
खेल का अर्थ (Meaning of Game)खेल GAMES
(खेल GAMES) खेलना एक स्वभाविक क्रिया है। प्रत्येक बालक का जन्म से शिशु अवस्था के दौरान हाथ-पैर हिलाना ही खेल की प्रक्रिया है। खेल गतिविधियाँ बालक के विकास तथा बुद्धि में सीधा प्रभाव डालती हैं। बालक द्वारा विकास की प्रारम्भिक अवस्था में खेलों के प्रति रुचि न लेना किसी समस्या को दर्शाता है। बालक का खेलों के प्रति असामान्य व्यवहार उसके वृद्धि एवं विकास में बाधा और आगे चलकर बालक के व्यक्तित्व के विकास, व्यवहार तथा सामाजिक व्यवहार में घुलने मिलने एवं ताल-मेल में समस्या उत्पन्न करता है।
कुछ समय पूर्व खेल को मात्र समय की बर्बादी समझा जाता था। कहा जाता था कि “पढ़ोगे लिखोगे बनोगे नवाब, खेलोगे कूदोगे बनोगे खराब” परन्तु आजकल खेलों को विद्यालयों में शिक्षण तथा व्यक्त्तित्व के विकास का महत्वपूर्ण तथा प्रभावशाली माध्यम माना जा रहा है खेल बालक की जन्मजात प्रवृत्ति है। बालक को खेल से आनन्द व आराम मिलता है।
खेल की परिभाषा (Definitions of Game)
वैलेण्टाइन के अनुसार, “ खेल वास्तव में वह प्रक्रिया है, जो खेल के लिए की जाती है।” स्टेनली हॉल के अनुसार, “खेल वंश परम्परागत का शुद्ध प्रकाशन है।”(खेल GAMES)
खेल का महत्व (Importance of Game)
बालक में खेल के प्रति स्वभाविक खिँचाव होता है। खेलों का इतिहास उतना ही प्राचीन है, जितना कि व्यक्ति का
विकास काल। प्रारम्भ से ही मानव जीवन में खेल-कूद का विशिष्ट स्थान रहा है। आधुनिक काल में शिक्षा के क्षेत्र में खेलों को निरंतर महत्व मिल रहा है। नवीन शिक्षण प्रणाली में खेल के द्वारा शिक्षण के सिद्धान्त पर बल दिया जा रहा है। खेल बालक की एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। इसलिए शिक्षा की शिक्षण पद्धति को प्ले वे मैथड पर नर्सरी व के जी कक्षा में अपनाया गया है,
जिसमें खेल-ही-खेल में बालक ऐसी शिक्षा ग्रहण करता है, जो अन्य साधनों से नहीं ग्रहण की जा सकती। शिक्षा में खेलों के महत्व के सम्बन्ध में दार्शनिक प्लेटो ने कहा है- “बालक को दण्ड की अपेक्षा खेल द्वारा नियंत्रित करना अधिक अच्छा है।”
आधुनिक शिक्षा में खेलों को अधिक महत्व दिया जा रहा है। नई शिक्षा नीति के अनुसार, शारीरिक शिक्षा का अध्ययन करना अनिवार्य कर दिया गया है। राष्ट्रीय, एशियन गेम्स, ओलम्पिक व कॉमन वेल्थ खेलों के आयोजन ने खेल की महत्ता को बढ़ावा दिया है। वर्तमान समय में खेल एक रोजगार और व्यवसाय के रूप में व्यक्ति के जीवन-यापन करने में सहायक हो रहा है अत: हम कह सकते हैं कि वर्तमान समय में खेलों का बहुत ही महत्व है।
कौशल विकास के खेल
1. स्पर्श के खेल
(i) मैं शिवाजी– छूने वाला खिलाड़ी किसी का भी नाम लेकर उसे पकड़ने दौड़ेगा। इन दोनों के बीच से जो खिलाड़ी “मैं शिवाजी” कहकर दौड़ते हुए निकलेगा, छूने वाला पहले को न छू कर अब उसे ही पकड़ेगा। इस प्रकार बार-बार छूने वाले के लिए लक्ष्य (शिवाजी) बदलता रहेगा। जो खिलाड़ी छुआ जायेगा, वह बैठक लगाकर तथा ताली बजाकर पकड़ना शुरू करेगा। शिक्षक बीच-बीच में बदल भी कर सकता है।
(ii) संगठन की जंजीर-एक खिलाड़ी दूसरे को दोनों मिलकर तीसरे को, तीनों मिलकर चौथे को छूते हुए सबको संगठन की जंजीर में साथ लेते जायेंगे। जंजीर से बाहर के खिलाड़ी इससे बचने का तथा इसमें तीन से अधिक संख्या होने पर पीछे से तोड़ने का प्रयास करेंगे। टूटने पर जंजीर के सब खिलाड़ी की पीठ पर बाकी लोग मुक्के मारेंगे, वे सब भाग कर एक निश्चित स्थान पर जायेंगे तथा पुन: जंजीर बनाकर प्रारम्भ करेंगे। सबके जंजीर में आ जाने पर खेल समाप्त होगा।
(iii) अंग छू– छूने वाला अपने दोनों हाथ ‘नमस्कार- मुद्रा में मिलाकर दौड़ेगा, शेष खिलाड़ी उससे बचेंगे। वह खिलाड़ी के जिस अंग (कमर, घुटना, पैर, सिर) को छू लेगा, वह (बालक) अपने उसी अंग को एक हाथ से पकड़ कर दूसरे हाथ से शेष को छूने का प्रयास करेगा। इस प्रकार छूने वाला खिलाड़ी बार-बार बदलेगा।
मण्डल के खेल (Board of Game)
(i) पिंजरा– दो खिलाड़ी (अ तथा ब) ऊँचे हाथ पकड़कर ‘पिंजरा’ बनाएंगे, शेष सब मण्डलाकार दौड़ते हुए, इसके नीचे से गुजरेंगे। शिक्षक कोई गीत बोलेगा। गीत रुकते ही अ और व हाथ नीचे करके (स) को बंदी बना लेंगे। इसी प्रकार एक और बन्दी (द) हो जाने पर (स) और (द) मिलकर दूसरा पिंजरा बना लेंगे। इस प्रकार पिंजरों की संख्या बढ़ती जायेगी; सबके बन्दी हो जाने पर खेल समाप्त होगा।
(iii) लंगड़ी कबड्डी– सब खिलाड़ी मण्डल के अंदर रहेंगे, एक खिलाड़ी (अ) कबड्डी की साँस भरकर एक टाँग पर दौड़ता हुआ,’ अधिकतम को छूने का प्रयास करेगा।
(iii) शेर-बकरी– लगभग तीन मीटर त्रिज्या के मण्डल में 12-15 खिलाड़ी रहेंगे, ये सब बकरियाँ होंगी। एक मजबूत खिलाड़ी (शेर) बाहर रहेगा, वह अन्दर घुसकर बकरियों को पकड़-पकड़ कर बाहर निकालेगा। बकरियाँ उससे बचेंगी तथा उसकी पीठ पर मुक्के भी लगायेंगी, सबके बाहर हो जाने पर खेल समाप्त होगा तथा अब कोई दूसरा बालक शेर बनेगा। बकरियों की संख्या को देखते हुए दो शेर भी बना सकते हैं।
दो दलों के खेल The Two Parties of The Game
(i) राम राजा-रावण- 8-10 संख्या के दो दल शिक्षक की ओर मुँह करके पास-पास खड़े होंगे, दोनों का नाम
क्रमशः राम, और राजा रहेगा। शिक्षक द्वारा राम कहने पर राम दल वाले खिलाड़ी लगभग 20 मीटर दूर (या कोई पेड़, दीवार आदि) तक दौड़ेंगे तथा राजा दल उन्हें पकड़ेगा; जो पकड़े जायेंगे, वे बाहर (out) हो जायेंगे। राजा कहने पर इसके विपरीत कार्य होगा। रावण कहने पर सब अपने स्थान पर बैठेंगे तथा राकेश, राजेश….. • आदि कोई शब्द बोलने पर सब मूर्ति वत् खड़े रहेंगे। जो इसमें गलती करेगा वह बाहर हो जायेगा, जिस दल के खिलाड़ी बाहर जायेंगे, वह पराजित होगा।
(ii) खजाना– 12, 15 संख्या के दल, पहचान के लिए एक दल के सब खिलाड़ी अपनी कमीज पेन्ट से बाहर कर लेंगे। शिक्षक एक रुमाल में कोई सिक्का या पत्थर (खजाना) रखकर उसमें 8-10 गांठें लगाकर रुमाल ऊपर उछालेगा, दोनों दल के खिलाड़ी रुमाल खोलकर वह खजाना प्राप्त करने का प्रयास करेंगे। इस छीना-झपटी तथा भाग-दौड़ में सब बार-बार अपने साथी की ओर रुमाल खोलकर खजाना शिक्षक के हाथ देने वाला दल विजयी होगा।
बैठ कर खेले जाने वाले खेल Siting Parties of The Game
(i) अन्त्याक्षरी– दो या तीन दल बनाकर हिन्दी, संस्कृत अथवा स्थानीय भाषा गीत, सुभाषित, श्लोक, कविता, भजन, चौपाई आदि एक दल बोलेगा। उसके अंतिम अक्षर से शुरू होने वाले शब्द से दूसरा दल बोलेगा, इस प्रकार खेल चलता रहेगा। जो दल इसमें असफल होगा उसके हिस्से का काम दूसरा दल करेगा तथा इससे उसे एक अंक भी प्राप्त होगा। खेल की समाप्ति पर जिस दल के सर्वाधिक अंक होंगे वह विजयी होगा।
(ii) काला- सफेद– हथेली के सीधे हिस्से को सफेद तथा उल्टे भाग को काला कहेंगे, सभी खिलाड़ी मण्डलाकार बैठेंगे, तथा अपनी हथेलियाँ ऊपर की ओर रखेंगे, शिक्षक बार-बार काला- सफेद… शब्द बदल-बदल कर बोलेगा, वह अपनी क्रियाओं तथा शब्दों से भ्रम भी उत्पन्न करेगा, गलत करने वाले खेल से बाहर होते रहेंगे।
साधन के खेल
दण्ड त्रिकोण– दो, तीन दल प्रत्येक के सम्मुख तीन दण्ड एक दूसरे के सहारे टिकाकर त्रिकोण (पिरामिड) बनायेंगे। सीटी बजने पर हर दल का पहला खिलाड़ी अपने हाथ में एक दण्ड या रुमाल लेकर, दौड़ते हुए सावधानी से इस त्रिकोण में से निकलेगा तथा वापिस आकार दण्ड या रुमाल अपने साथी को देगा। यही क्रिया दूसरा और फिर क्रमशः सभी करेंगे, अपना काम पहले करने वाला दल विजयी होगा। यदि किसी खिलाड़ी से असावधानी से वह त्रिकोण गिर जाता है तो वह स्वयं ही उसे बनायेगा, तब वापस आकर अगले खिलाड़ी को दण्ड या रुमाल देगा।
प्रतिस्पर्धात्मक खेल COMPETITIVE GAME
ऊँची कूद (Long Jump)
इसके लिए क्रमानुसार 3.66 मीटर की दूरी पर लकड़ी या धातु के 3.98 मी. से लेकर 4.02 लम्बे खम्भे या छड़ी समतल भूमि पर लगायी जाती है। इन छड़ों या खम्भों पर काला तथा सफेद रंग होता है। प्रतियोगी विभिन्न ऊँचाई पर स्थित खम्भों या छड़ों के ऊपर से कूदकर अपनी खेल दक्षता का परिचय देता है। यह कूद चार भागों में पूर्ण होती है।
(1) दौड़
(2)उछाल
(3) छड़ पार करना
(4) जमीन पर आना। ऊँची कूद के दौड़ पथ की लम्बाई कम से कम 15 मीटर होनी चाहिए।
यह दौड़ पथ खिलाड़ी की सुविधानुसार सीधा या तिरछा हो सकता है। निश्चित दूरी से दौड़कर खिलाड़ी छड़ के नजदीक पहुँचकर एक पैर पर उछाल लेता है तथा छड़ को पार कर दूसरी ओर जमीन पर गिरता है। छड़ पार करने के कई तरीके होते हैं। इसमें फॉसबरी फ्लापशैली प्रमुख हैं। खिलाड़ी कितनी अधिक ऊँचाई वाली छड़ को पार करता है, यह उसके उछाल एवं छड़ पार करने की शैली या तरीके पर निर्भर करता है। प्रत्येक ऊँचाई पर प्रत्येक खिलाड़ी को तीन अवसर प्रदान किये जाते हैं।
भूमिका
– मानव-जीवन में ‘ धावन कला’ का इतिहास लगभग उतना ही प्राचीन है, जितना कि मानव का इतिहास। खेल प्रतियोगिताओं में विभिन्न प्रकार की दौड़ों को बहुत अधिक महत्व दिया गया है तथा राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर दौड़ प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती हैं।
दौड़ का आरम्भ करना तथा दौड़ने की सही अवस्था
सभी धावकों के लिए एक-एक लेन निश्चित की जाती है सभी खिलाड़ी अपनी-अपनी लेन में दौड़ धावक ट्रैक में बनी सीधी रेखाओं के अ-ब रेखा पर प्रारम्भ रेखा A B के पीछे अपना सारा शरीर रखते हुए खड़े हो जाते हैं। दौड़ प्रारम्भ करवाने वाले की आज्ञानुसार दौड़ प्रारम्भ हो जाती है। इस खेल में प्रारम्भ से अंत तक सभी धावक पूर्ण शक्ति के साथ दौड़ते हैं। समाप्ति रेखा के दोनों छोरों पर एक धागा बंधा रहता है जिसे टचर बार कहते हैं। दौड़ पूर्ण तभी मानी जायेगी, जब खिलाड़ी समाप्ति रेखा को सम्पूर्ण शरीर से पार कर लेगा। प्रथम आने वाला धावक उस धागे को अपने सीने से छूते हुए रेखा पार करता है।”
80 मी. बाधा दौड़ प्रत्येक धावक को प्रारम्भ से अंत तक अपनी ही लेन में दौड़ना होता है। 80 मी. बाधा दौड़ में बाधा की ऊंचाई 0.762 मी. होती है। प्रारम्भिक रेखा से पहली बाधा की दूरी 12.00 मी., शेष बाधाओं के बीच की दूरी 8.00 मी. तथा समाप्ति रेखा से अंतिम बाधा की दूरी 12.00 मी. होती है। 80 मी. बाधा दौड़ में बाधाओं की संख्या 8 होती है।
बाधा दौड़ के नियम
बाधा दौड़ के निम्नलिखित नियम हैं
1. बाधा को हाथ से गिराना या पैर से जानबूझ कर गिराना Foul है।
2. दोनों ही पैर बाधा के ऊपर से जाने चाहिए।
टेबल टेनिस (Table Tennis)
1. मेज का आकार आयताकार
2. मेज की लम्बाई 247 सेमी.
3. मेज की चौड़ाई 152.5 सेमी.
4. जमीन से मेज की ऊंचाई 76 सेमी.
5. नेट की लम्बाई 183 सेमी.
6. मेज से नेट की ऊंचाई 15.2 सेमी.
7. गेंद की परिधि 37.2 मिमी. से 38.2 मिमी.
8. गेंद का भार 24 ग्राम से 2.70 ग्राम
9. मेज का रंग नीला या हरा
याद रखने योग्य बातें
रैकेट (Racket) रैकेट किसी भी आकार या भार का हो सकता है। तल गहरे लाल या काले रंग का होना चाहिए।
सर्विस-
1. सर्विस करते समय गेंद हथेली पर टेबल से ऊपर होनी चाहिए। 2. सर्विस करते समय गेंद हाथ द्वारा कम से कम 15 सेमी. उछालनी चाहिए।
3. सर्विस करते समय गेंद और रैकेट निर्णायक को दिखायी देने चाहिए।
4. सर्विस को इस प्रकार वापस किया जाय कि गेंद नेट के ऊपर से होकर टेबल से टच होनी चाहिए।
गेंद खेल में (Ball in Play) सर्विस में हथेली द्वारा आगे को बढ़ाने के क्षण में गेंद खेल में मानी जायेगी।
फाउल (Foul)-
1. गेंद एक कोर्ट में दो बार टच कर जाय तो फाउल होगा।
2. किसी खिलाड़ी या कपड़ों को छू लेने पर फाउल होगा।
3. खिलाड़ी द्वारा गेंद को दो बार मारना फाउल होगा।
4. गेंद बिना टप्पा खाये आती है तो फाउल होगा।
5. डबल में खेल की सर्विस में सर्वर या रिसीवर के बाँयी कोर्ट को छू लेने पर फाउल होगा।
लैट (Let)
खेल के मध्य ‘विराम’ लैट कहलाता है।
1. सर्विस करते समय गेंद नेट को या स्टेन्ड को छू लेती है तो लैट होता है।
2. सर्विस करने वाला तैयार न हो और सर्विस कर दी जाय।
3. यदि किसी गलती को समाप्त करने के लिए खेल रोका जाय।
4. यदि किसी कारण खिलाड़ी सर्विस करने या वापस करने में अवरोध पाकर रुक जाता है।
खेल के नियम-
1. दिशा का निर्णय या सर्वर बनने का अधिकार टॉस द्वारा निर्धारित किया जायेगा।
2. गेम उस खिलाड़ी या जोड़े द्वारा जीता हुआ माना जायेगा जो पहले 21 अंक अर्जित करता है।
3. मैच एक गेम, तीन गेम होगा। खेल लगातार जारी रहेगा। जब तक कोई खिलाड़ी आराम के लिए नहीं कहता।
4. युगल में प्रथम पाँच सर्विस चुना हुआ जोड़ा करेगा तथा विपक्षी का साथी उन्हें रिसीव करेगा।
5. एकल में 5 अंक के पश्चात सर्वर रिसीवर बन जाता है अर्थात सर्विस बदल जाती है।
6. दूसरी पाँच सर्विस प्रथम पाँच सर्विस प्राप्त करने वाला करेगा तथा प्रथम पाँच सर्विस करने वाला उन्हें प्राप्त करेगा।
7. तीसरी पाँच सर्विस करने वाले का साथी करेगा तथा प्रथम पाँच सर्विस करने वालो का साथी उन्हें प्राप्त करेगा।
8. कोई खिलाड़ी अपने नम्बर के बिना सर्विस करता है तो गलती मानी जायेगी और खेल उस खिलाड़ी की पुनः प्राप्ति पर शुरू किया जायेगा।
टेबल टेनिस सम्बन्धी शब्दावली नेट, ग्रिप, चायनिज ग्रिप टाप स्पिन, पेन होल्डर ग्रिप एण्ड लाइन, हॉफ बाली बैक स्पिन, सेंटर लाइन, हॉफ कोर्ट, लेट साइड स्पिन, स्ट्रोक, पुश स्ट्रोक, स्विंग, काउन्टर हिटिंग, रेली, रिवर्स, सैण्डविच, सर्वर, पाइन्ट, वॉली स्ट्रोक, फ्री हैन्ड, बाधा रैकेट हैन्ड ।
अंतर्राष्ट्रीय टेबिल टेनिस में खिलाड़ी
(1) सोम्यजी घोष (2) पी. घटक (3) के. समिनी (4) ए. शरथ कमाल
बैडमिंटन (Badminton)
बैडमिंटन खेल की शुरूआत के बारे में निश्चित रूप से कुछ भी स्पष्ट नहीं कहा जा सकता, हालाँकि यह अवश्य कहा जा सकता है कि 17वीं शताब्दी में यह खेल बैडमिंटन नामक स्थान पर खेला जाता था जो कि इंग्लैण्ड के Gloucestershire में था। यह खेल यूरोप महाद्वीप के अन्य देशों में भी खेला जाता था। ऐसे भी प्रमाण मिलते हैं कि चीन में बैडमिन्टन की तरह का खेल 17वीं शताब्दी से पहले भी खेला जाता था। भारतवर्ष में यह खेल सन् 1870 के लगभग पूना (महाराष्ट्र) में खेला जाता था,
लेकिन बैडमिन्टन को मशहूर करने का श्रेय इंग्लैण्ड को जाता है क्योंकि सन् 1873 में प्रथम बैडमिन्टन क्लब की स्थापना Bath (England) में की गई थी। सन् 1893 में Badminton Association of England की स्थापना की गई थी। सन् 1934 में विश्व बैडमिंटन संघ International Badminton Federation की स्थापना हुई। धीरे-धीरे बैडमिन्टन सारे संसार में लोकप्रिय हो गया।
सन् 1934 में इस संघ द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के मैचों के लिए नियम बनाए गए। 1948 में विश्व चैम्पियनशिप थॉमस कप के रूप में शुरू हुई। इस कप में विश्व के बहुत से देशों ने भाग लिया। सन् 1957 में महिला चैम्पियनशिप के लिए “उबेर कप” की शुरुआत हुई। सन् 1934 में Badminton Association of India का गठन हुआ और उसी वर्ष पहली बार कलकत्ता में All India Championship आयोजित की गई।
बैडमिन्टन से सम्बन्धित नए सामान्य नियम (Latest General Rules Related to Badminton)
1. कोर्ट (Court) बैडमिन्टन कोर्ट का आकार आयताकार होता है। इसकी लम्बाई व चौड़ाई क्रमशः 44 फोट व 17 फीट होती है। सभी रेखाओं की चौड़ाई माप में शामिल होती है।
2. (Posts) इसमें दो पोस्ट्स होते हैं जिनकी ऊँचाई फर्श से 1.55 मीटर होनी चाहिए।
3. नेट (Net) -नेट का रंग गहरा होना चाहिए तथा इसके जाल के खाने 15-20 मि.मी. चौड़े होने चाहिए। मध्य से नेट की ऊँचाई 5 फीट होनी चाहिए। नेट की चौड़ाई 760 मिमी. होनी चाहिए।
4. टॉस (Toss) खेल प्रारम्भ होने से पहले टॉस किया जाता है टॉस जीतने वाला खिलाड़ी पहली सर्विस करे या फिर कोर्ट के अर्ध का चुनाव करेगा।
5. स्कोरिंग (Scoring)- गेम जीतने के लिए पुरुषों व महिलाओं दोनों के सिंग्ल्स व डबल्स सभी गेम में प्रत्येक गेम 21 अंकों का होता है 3 (Best of Three) गेमों में से दो गेम जीतने वाला खिलाड़ी विजयी होता है।
6. मैच (Match) एक मैच Best of Three Games का होता हैं।
7. खिलाड़ी (Players) सिंग्ल्स गेम, दो खिलाड़ियों के मध्य खेला जाता है जिसमें प्रत्येक साइड में एक खिलाड़ी होता है जबकि डबल्स गेम, दो युगलों के (Two Pairs) बीच खेला जाता है।
8. सिरों का बदलना (Change of Ends) तीसरे गेम के प्रारम्भ से पहले प्रत्येक गेम के बाद खिलाड़ी अपने शिरे (Ends) बदलेंगे। इसका अर्थ यह है कि पहले व दूसरे गेम के बाद सिरे (End) बदले जायेंगे।
9. अन्तराल (Interval)- पहले व दूसरे गेम के बीच में 90 सेकन्ड का अंतराल के बीच में अन्तराल 5 मिनट से अधिक नहीं होगा।
सर्विस फाल्ट्स (Service Faults) एक सर्विस तब गलत (Faults) होती है।
1. यदि सर्विस उपयुक्त न हो। यदि शटल नेट में फँस जाए।
2. यदि एक खिलाड़ी द्वारा शटल पर दो बार प्रहार हो जाए।
3. यदि शटल हॉल की छत (Ceiling) को छू जाए।
4. यदि सर्विस के दौरान शटल पर प्रहार करते हुए, सर्वर (Server) से शटल पर प्रहार न हो सके।
बैडमिन्टन
युगल के लिए कोर्ट का आकार 44’×20
एकल के लिए कोर्ट का आकार 44 x 17 ‘
जाल की चौड़ाई 2’6″
मध्य से जाल की ऊँचाई 5’
पोस्टों पर जाल की ऊँचाई 5’1″
शटल का वजन 4.73 ग्रा. से 5.50 ग्रा. तक
शटल के पंखों की लम्बाई 2.5 से 2.75 इंच
एकल, युगल सभी के लिए 21 अंक
किनारों की गैलरी का आकार 1’6″
पीछे वाली गैलरी का आकार 2’6″
अधिक से अधिक सैट 3
रैकेट का भार 85 से 140 ग्राम
रैकेट की लम्बाई 27″ या 680 मि.मी.
फ्रेम की लम्बाई 11″ या 270 मि.मी.
फ्रेम की चौड़ाई 9″
महत्वपूर्ण ट्रॉफीयाँ (Important Torphies)
1. थॉमस कप (विश्व टीम पुरुष)
2. उबेर कप (विश्व टीम महिला)
3. विल्स विश्व कप
4. यूरोपियन कप
5. कोनिका कप
प्रसिद्ध खिलाड़ी (Famous Sports Personalities)
1. सैयद मोदी
2. मधुमिता बिष्ट
3. राजीव बग्गा
4. पी. गोपी चन्द
5. निखिल कानेलकर
6. तृप्ति मुरगुंडे
7. सायना नेहवाल
बैडमिंटन के कुछ मूल कौशलों की संक्षिप्त व्याख्या नीचे दी गई है
(i) स्ट्रोक्स (Strokes) बैडमिन्टन में दो प्रकार के स्ट्रोक्स होते हैं। ये निम्न हैं
1. फोर हैंड स्ट्रोक (Forehand Strokes ) फोरहँड स्ट्रोक एक ऐसा स्ट्रोक होता है जो शटल को वापस करने
के लिए खेला जाता है। यह स्ट्रोक खिलाड़ी के शरीर के दाँयी ओर से खेला जाता है।
2. बैकहैंड स्ट्रोक (Backhand Stroke) बैकहैंड स्ट्रोक एक ऐसा स्ट्रोक होता है जो शटल को वापस करने
के लिए प्रयोग में लाया जाता है। यह स्ट्रोक खिलाड़ी के शरीर के बाँयी ओर से खेला जाता है।
(ii) ड्रॉप शॉट (Drop Shot)- ड्रॉप शॉट काफी हल्का स्ट्रोक होता है। जिसमें शटल को फोरहँड, बैकहैंड या हैंड स्ट्रोक लगाकर नेट के ऊपर से भेजा जाता है ताकि नेट को पार करने के बाद शटल नेट के पास ही विरोधी के कोर्ट में गिर जाये।
(iii) ड्राइव (Drive)- यह एक सीधा स्ट्रोक होता हैं। जिसमें शटल ठीक नेट के ऊपर से, ग्रांउड के समानान्तर गुजरती है। इस प्रक्रिया में शटल विरोधी की तरफ ऊँची नहीं जाती है।
(iv) शटल की ग्रिप (Shuttle Grip) इस ग्रिप में सर्विस करते हुए शटल कॉक निम्न तीन तरह से पकड़ा जा सकता है
1. बेस ग्रिप (Base Grip)- इस ग्रिप में शटल कॉक के बेस को अँगूठे व दो उँगलियों से पकड़ा जाता है।
2. मिड ग्रिप (Mid Grip)- इस तरह की ग्रिप में शटल को पंखों व कॉर्क के मध्य से अँगूठे व उँगलियों से पकड़ा जाता है।
3. आउट हैंड ग्रिप (Out Grip) इस ग्रिप में शटल को अँगूठे और तर्जनी उँगली के ऊपरी भाग से पकड़ा जाता है।
4. रैकेट का ग्रिप (Grip of the Racket)
बैडमिंटन में सामान्यत: रैकेट को पकड़ने के लिए निम्नलिखित ग्रिप प्रयोग में लाये जाते हैं
(i) फोरहँड ग्रिप (Forehand Grip)- फोर हँड ग्रिप के लिए बाँये हाथ में रैकेट की शाफ्ट को पकड़ें। ऐसा करते हुए रैकेट का मुँह फर्श के लम्बवत् होना चाहिए तथा ग्रिप इस प्रकार लेनी चाहिए जैसे हाथ मिलाते हुए होती है। अपने हाथ को नीचे की तरफ सरकाएँ, ताकि मोटा वाला भाग, हैंडल के बट के विरुद्ध आराम से आ जाये। इस प्रकार अँगूठे व तर्जनी उँगली ‘V’ की आकृति की होगी उँगलियाँ थोड़ी फैलकर हैंडल पर लिपट जाती हैं।
(ii) बैकहैंड ग्रिप (Backhand Grip)- बैकहैंड ग्रिप के लिए रैकेट के फ्रेम के सबसे ऊपरी किनारे को थोड़ा -सा दाँये घुमाएँ व अँगूठों को हैंडल के चौड़ी तरफ समानान्तर व साथ में लगाएँ। इस प्रकार के ग्रिप की पहुँच अधिक लम्बी अधिक शक्तिशाली व अच्छी परिशुद्धता की होती है।
चक्का फेंक
सबसे पहले थ्रो करने वाले हाथ से दूसरे हाथ पर चक्का रखना। फिर थ्रोइंग हाथ की हथेली चक्के के ऊपर उठे हुए भाग पर रखनी चाहिए। चारों उँगलियों के आगे से थोड़े-थोड़े हिस्से चक्के के किनारों को थामे रहेंगे और अँगूठा सीधा रहेगा, जिसका भाग चक्के के ऊपर टिका रहेगा और चक्के पर अँगूठे से दूसरी उँगली का भी दबाव देते रहेंगे और चक्के का कुछ भाग थ्रो वाले हाथ की कलाई पर भी रखा रहेगा और हाथ सीधा रहेगा। ध्यान रहे चक्का अँगूठे से दूसरी उँगली से ऊपर को ही जाना चाहिए तथा उल्टी दिशा को घुमाना चाहिए और पट होकर ही हवा में उड़ना चाहिए।
(i) स्टैंडिंग थ्रो (खड़े होकर ही फेंकना) चक्का खड़े-खड़े भी फेंका जा सकता है और स्टाइल द्वारा भी। लेकिन ट्रेनिंग रहित खिलाड़ी को पहले खड़े होकर ही थ्रो करनी चाहिए। प्रारम्भ में थ्रोअर को “A” पर अपना दाँया पैर तथा “B” पर बाँया पैर रखना चाहिए तथा मुँह C की ओर रखना चाहिए, जिसका दाँया हाथ थ्रो वाला हो और डिस्क को हाथ में लेकर थोड़ा स्विंग करना चाहिए।
(ii) शरीर की गतिविधि सीधे खड़े थ्रोअर को अपने दाँये पैर की ओर स्विंग करना चाहिए तथा स्विंग करते समय दाँया घुटना थोड़ा मुड़ जायेगा तथा बाँया घुटना घूमकर दाँये घुटने की दिशा में हो जायेगा और जब शरीर का ऊपरी भाग दाँयी ओर जाता है, तो बाँये पैर का पंजा भी जमीन पर लगेगा। फिर बाँयी ओर स्विंग होता है, तो दाँये पैर का पंजा जमीन को लगेगा तथा बाँयी ओर स्विंग लेते समय दोनों कन्धे जमीन के समानान्तर होंगे। एक दो बार स्विंग लेने के बाद थ्रो की जायेगी। जब डिस्क (चक्का) वाला हाथ स्विंग लेकर दाँयी साइड में जाता है तो सीधा रहना चाहिए
तथा कन्धे की सीध में होना चाहिए (ऊपर नीचे नहीं) जब दाँया हाथ सीने के सामने चक्के को लेकर आता है तो बाँये हाथ को चक्के के नीचे लगाना चाहिए, ताकि चक्का नीचे न गिरे। चक्का व सीधे हाथ की हथेली जमीन के समानान्तर रहनी चाहिए तथा अंतिम स्विंग पर शरीर का सारा भार बाँये पैर के पंजे पर आयेगा तथा दाँया पैर भी पंजे पर टिका रहेगा एवं दाँया हाथ झटके से थ्रो दिशा में सीधा होगा तथा बाँया हाथ पसलियों के पास मुड़ा रहेगा और दाँया हाथ, हिप व पैर एक सीध में रहेंगे। ध्यान रहे कि हिप व ऊपर शरीर तथा दाँये हाथ का झटका एक साथ ही लगना चाहिए।
चक्का थ्रो के नियम
1. चक्का गिरने के बाद ही खिलाड़ी सर्किल से बाहर आना चाहिए।
2. सर्किल के पीछे वाले हिस्से से ही बाहर जाना चाहिए।
3. चक्का सर्किल के अंदर से फेंका जाय।
4. चक्का सेक्टर के अंदर ही गिरना चाहिए।
5. सेक्टर की सभी रेखायें माप से बाहर होती हैं।
6. आठ प्रतिभागियों से अधिक होने पर पहले सभी को तीन अवसर मिलते हैं तथा बाद में श्रेष्ठ आठ प्रतिभागियों को तीन अवसर और मिलते हैं।
7. एक थ्रो के अवसर का समय 1 मिनट होता है।
8. थ्रो के बाद आगे से निकलना अथवा आगे जमीन को छूना फाउल होता है।