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पाचन तंत्र the digestive system

पाचन तंत्र THE DIGESTIVE SYSTEM

पाचन तंत्र the digestive system
पाचन तंत्र the digestive system

THE DIGESTIVE SYSTEM पाचन तंत्र का अर्थ  Meaning of Digestive System

कोशिका के जीवन को विकास वृद्धि व संरचनात्मक कार्यों हेतु हमें पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है। हम जो भोजन ग्रहण करते हैं, उसमें कई प्रकार के परिवर्तन आने के उपरांत उसे कोशिकाओं द्वारा अवशोषित किया जाता है अतः हम कह सकते हैं कि भोजन में रासायनिक एवं भौतिक परिवर्तन होने के उपरांत वह साधारण पदार्थों में बदल जाता है।

ये साधारण पदार्थ ही हमारी कोशिकाओं का भोजन होता हैं, जिनको वह अपने अंदर अवशोषित कर लेती है। ये पदार्थ पचकर रक्त में प्रवेश पाते हैं, और शरीर को पुष्ट करते हैं। जो पदार्थ पचता नहीं है, उसे शरीर से बाहर निकाल दिया जाता है। पाचन क्रिया को सुचारु रूप से चलाने में जिन अंगों की सहायता मिलती है, उन अंगों के समूह को ‘ पाचन संस्थान’ या ‘ पाचन तंत्र’ कहते हैं।

आहार नाल Diet Placenta

हमारे द्वारा ग्रहण किये गये प्रत्येक आहार का शरीर द्वारा उपयोग उसके पाचन के उपरांत ही होता है। पाचन के लिये मुख से लेकर मलद्वार तक हमारे शरीर में एक लम्बी नली जैसी रचना होती है; जिसे ‘आहार नाल’ कहते हैं। जिसकी लम्बाई लगभग 9 मीटर होती है। आहार नाल में विभिन्न भाग होते हैं, जो सम्मिलित रूप से एक ‘पाचन तंत्र’ का निर्माण करते हैं। मनुष्य की आहार नाल के मुख्य भाग पाँच होते हैं, जो निम्न हैं

1. मुख व मुखगुहा (Mouth and Oral Cavity

2. ग्रसनी (Pharynx)

3. ग्रासनली (Oesophagus)

4. आमाशय (Stomach)

5. आँत (Intestine)

1. मुख व मुखगुहा-

हमारा मुख मुख गुहा में खुलता है। दोनों गालों से घिरी हुई तथा दोनों जबड़ों से घिरी मुखगुहा होती है। इसमें ऊपर की ओर तालू होता है। तालू के अंत में लटकन के रूप में कोमल ‘काग’ होता है। जिसके इधर-उधर गाँठों के रूप में टॉन्सिल्स होते हैं, जो होठों के पीछे तथा अन्य स्थानों में मुखगुहा में खुलते हैं। दोनों जबड़ों में कुल मिलाकर 32 दाँत होते हैं। लार में Small Gallbladder intestine एक पाचक विकर ‘टायलिन’ होता है। लार से भोजन लुग्दी के रूप में बदल :Duodiomame. दिया जाता है।

2. ग्रसनी (Pharynx)

ग्रसनी मुख गुहा का पिछला भाग 12 से 15 सेमी. लम्बे भाग ग्रसनी में खुलता है। इसके तीन भाग होते हैं, जो निम्न हैं

(i) नासाग्रसनी श्वसन मार्ग के पीछे स्थित होती है।

(ii) स्वर यंत्र ग्रसनी जहाँ वायु मार्ग तथा आहार मार्ग एक दूसरे को काटते हैं। (iii) मुख ग्रसनी ठीक सामने वाला भाग ग्रसनी का पिछला भाग ‘ग्रासनली’ में खुलता है।

3. ग्रासनली (Oesophagus)

ग्रासनली- अच्छी प्रकार चबाया हुआ भोजन जीभ के द्वारा ग्रास नली में पहुँचाया जाता है। भोजन नली के पास ही श्वाँसनली भी होती है। भोजन श्वाँस नली में न जाये, इसे रोकने के लिये एक उपजिहवा नामक अवयव रहता है। यदि भोजन श्वाँस नली में चला जाता है, तो खाँसी उठती है, और खाँसी ही भोज्य पदार्थ को बाहर निकाल देती है। ग्रास-नली के द्वारा ही भोजन आगे धकेला जाता है तथा माँसपेशियों की सहायता से भोजन आगे धकेला जाता है। ग्रासनली को ‘ग्रसिका’ भी कहते हैं। ग्रासनली सँकरी तथा लगभग 25 सेमी. खुलती है। ग्रासनली की दीवार मोटी व माँसल होती है।

4. आमाशय (Stomach)

आमाशय- यह उदरगुहा में बाँयी ओर डायफ्राम के नीचे स्थित थैले के समान पेशीय अंग है। इसकी लम्बाई लगभग 24 सेमी. तथा चौड़ाई 10 सेमी. होती है। आमाशय का प्रारम्भिक भाग अपेक्षाकृत अधिक चौड़ा तथा पिछला भाग सँकरा होता है। यह तीन भागों में क्रमशः ‘कार्डियक’, ‘फंडिक’ तथा ‘पाइलोरिक’ में बँटा होता है। इनमें भीतरी सतह पर ‘जठर-ग्रन्थि’ होती है, जो जठर रस का स्राव करती है। आमाशय की दीवार मोटी ग्रन्थिल एवं पेशीय होती है। इसमें वर्तुल, अनुदैर्ध्य तथा तिरछी पेशियाँ पायी जाती हैं।

5. आँत (Intestine)

आँत- आमाशय के पीछे पूरी उदरगुहा को घेरे हुये अत्यधिक कुण्डलित आहार नाल का शेष भाग आँत कहलाता है, इसके दो प्रमुख भाग होते हैं- छोटी आँत व बड़ी आँत।

(I) छोटी आँत-

छोटी आँत लगभग 6 मी. लम्बी होती है। छोटी आँत में भोजन का पाचन व अवशोषण होता है। इसके अगले भाग को ‘ग्रहणी’ कहते हैं, जो 25 सेमी. लम्बी होती है। यह आमाशय के साथ लगभग ‘C’ का आकार बनाती है। इसके मुड़े भाग तथा आमाशय के बीच ‘अग्न्याशय’ नामक ग्रंथि होती है। ग्रहणी में ‘यकृत’ (शरीर की सबसे बड़ी ग्रंथि) से पित्त रस को लाने वाली ‘पित्त वाहनी’ तथा ‘ अग्न्याशय वाहिनी’ खुलती है। इसके मध्य भाग को ‘जेजुनम’ कहते। हैं। यह लगभग 2.5 मी. लम्बी तथा 4 सेमी. चौड़ी नलिका है। यह अत्यधिक कुण्डलित होती है। छोटी आँत के शेष व तीसरे भाग को ‘इलियम’ कहते हैं। जो लगभग 2.75 मी. लम्बी व 3.5 सेमी. चौड़ी कुण्डलित नलिका है।

छोटी आँत में ग्रहणी को छोड़कर शेष भाग में असंख्य छोटे-छोटे उँगुली जैसे उभार, जिन्हें ‘रसांकुर’ कहते हैं, लटके रहते है। इनके बीच-बीच में आन्त्र रस’ स्रावित करने वाली ‘आन्त्र ग्रन्थियाँ’ होती है। रसांकुर भोजन के अवशोषण का कार्य करते हैं। यहाँ भोजन का पाचन पूर्ण हो जाता है।

(II) बड़ी आँत-

छोटी आँत के बाद आहार नाल का शेष भाग ‘बड़ी आँत’ कहलाता है। यह अपेक्षाकृत छोटी से छोटी व चौड़ी होती है। इसके निम्न तीन भाग होते हैं।

1. सीकम यह लगभग 6 सेमी. लम्बी तथा 7.5 सेमी. चौड़ी थैली जैसी संरचना है। इसमें एक 9 सेमी. लम्बी बन्द नलिका जुड़ी होती है। जिसे ‘एपेंडिक्स’ कहते हैं।

2. कोलन- यह लगभग 1.25 सेमी. लम्बी, 6 सेमी. चौड़ी नलिका है, जो ‘U’ है। इसका छोर कुछ बाँयी ओर हटकर ‘रेक्टम’ (मलाशय) में खुलता है। आकार में छोटी आँत को घेरे रहती

3, मलाशय यह लगभग 12 सेमी. लम्बी तथा 4 सेमी. चौड़ी होती है। इसका 3 से 4 सेमी. लम्बा सँकरा भाग अन्तिम ‘गुदा’ अथवा ‘ मलद्वार’ नामक छिद्र द्वारा शरीर से बाहर खुलता है। इसकी भित्ति में संकुचनशील पेशियाँ होती हैं

बड़ी आँत में पानी का अवशोषण होता है तथा अपचित भोज्य पदार्थ (मल) संचित रहता है। पाचन तंत्र के अन्य अंग, जो आहार नाल से बाहर होते हैं; क्रमश: लार ग्रन्थियाँ, दाँत, यकृत (Liver), पित्ताशय (Gall Bladder), अग्न्याशय (Pancreas), तिल्ली (Splean) आदि हैं।

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