वनों का महत्व (Importance of Forests)
वन प्रकृति की महान भेंट हैं। वनों की सम्पदा अनेकों प्रकार से उपयोगी है। वन जलवायु को नियंत्रित करते हैं और वर्षा में मदद करते हैं। वे पर्यावरण प्रदूषण के नियंत्रण में मदद करते हैं। वनों से प्राप्त लकड़ी का प्रयोग विभिन्न उद्योगों तथा फर्नीचर बनाने में किया जाता है। वन जंगली जंतुओं के आश्रय स्थल हैं।
वन पर्यावरण दृष्टि से भी उपयोगी हैं। वन भूमि के कटाव को भी रोकते हैं। वर्षा का जल उपयोगी मिट्टी को बहा ले जाता है जिससे भूमि अपरदन की समस्या उत्पन्न हो जाती है। वन रासायनिक चक्र में परिवर्तित करके जलवायु और मौसम को जीवन के अनुकूल बनाते हैं। वृक्ष वातावरण से कार्बन डाईऑक्साइड ग्रहण करके ऑक्सीजन छोड़ते हैं। ये वातावरण को नियंत्रित रखकर पृथ्वी का पर्यावरण सन्तुलन बनाए रखते हैं।
वनों का कटाव (Deforestation)
वृक्षों का कृषि, लकड़ी, ईंधन और मानवीय बस्तियों के लिए, पशु बाड़ों के लिए विनाश करना बननाशन या वनों का कटान कहलाता है।
विनाश का दुष्प्रभाव (Impact of Destruction)
वैज्ञानिकों के अनुमानानुसार उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों का 130000 वर्ग किमी क्षेत्र प्रति वर्ष कटान के कारण नष्ट हो जाता है। इसने सम्पूर्ण संसार में निम्न प्रभाव डाले हैं:
1. घर न रहने के कारण पशुओं की कई प्रजातियाँ मिट गई हैं।
2. कम पौधों का अर्थ है, कम प्रकाश संश्लेषण कम प्रकाश संश्लेषण से आक्सीजन का उत्पादन कम हो जाता है और हवा से कम मात्रा में कार्बन डाईआक्साइड बाहर जाती है।
3. वन एक अस्थायी पर्यावरण है जहाँ पर अस्तित्व पोषक तत्वों के तीव्र और अथक पुनरुत्पादन पर निर्भर करता है। एक बार वन नष्ट होने पर पोषक चक्र टूट जाता है। ह्यूमस दूर नहीं हो पाती और मृदा शीघ्र ही बंजर होकर क्षरित हो जाती है। बिना वर्षा के वन स्वयं को पुनः स्थापित करने में सक्षम नहीं होते। भूमि कृषि के योग्य भी नहीं रहती।
4. इण्डोनेशिया और बोर्नियों में राज्य और अंतर्राष्ट्रीय लकड़ी की कम्पनियों के कारण हुए वर्षा वनों के विनाश ने हजारों प्रजातियों के पौधों व
पशुओं को संकट में डाल दिया है। इससे बाढ़ की आशंका बढ़ गई है और लाखों एशियाई लोग बढ़ती भुखमरी की कगार पर हैं।
5. संसार के उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों का कटान दो प्रकार से ग्रीन हाउस प्रभाव में योगदान कर सकता है:
(i) भूमि को साफ करने के लिए वृक्ष जलाए जाते हैं, वे बड़ी मात्रा में कार्बन डाईआक्साइड छोड़ते हैं। यह मुख्य ग्रीनहाउस गैस है। यह अनुमान है कि 1 बिलियन टन से अधिक कार्बन डाई आक्साइड जलते वनों द्वारा छोड़ी जाती है।
(ii) वृक्षों और अन्य पौधों की हानि का अर्थ है कम कार्बन डाईआक्साइड वातावरण द्वारा प्रकाश संश्लेषण के माध्यम से सोखी गई है। वनों का कटान पूरी तरह से वातावरण में कार्बन डाईआक्साइड के स्तरों में वृद्धि करता है। कार्बन डाईआक्साइड के बढ़े स्तरों के साथ अधिक ऊष्मा पृथ्वी की सतह के निकट फंस जाती है जिससे वैश्विक गर्माहट उत्पन्न होती है।
वन्यजीवन (Wildlife)
वन्यजीवन में पौधे, पक्षी, पशु और अन्य अवयव आते हैं जो प्राकृतिक निवास में रहते हैं। जैव मण्डल के सभी अवयव एक दूसरे पर वातावरण के संतुलन के माध्यम से निर्भर हैं। मानवीय क्रियाकलापों के कारण पक्षियों और पशुओं की कई प्रजातियाँ लुप्त हो गई हैं और कई दुर्लभ और संकट में हैं।
वन्यजीवन के विलोप के कारण (Causes of Extinction of Wildlife)
1. निवास का नाश (Habitat Destruction):
जनसंख्या विस्फोट और संसाधनों की बढ़ती आवश्यकता के साथ कृषि, निवास और पशुओं के चारे के लिए वन साफ किए गए। वनों के कटाव ने वन्यजीवन की वृद्धि रोक दी है।
2. शिकार और चोरी से वध (Hunting and Poaching):
पशुओं को भोजन, पंख, फर, खाल, सींग और दाँत के लिए मारा जाता है। शिकार, विलोप का मुख्य कारण है।
3. प्रदूषण (Pollution):
विभिन्न उद्योगों द्वारा फैलाया वायु, जल और मृदा प्रदूषण पशु स्वास्थ्य को बुरी तरह से प्रभावित करता है। हानिकारक रसायन; जैसे डीडींटी और डाइएल्डरिन कई उपयोगी कीटों को नष्ट कर देता है और वन्यजीवन को प्रभावित करता है।
वन्यजीवन को संरक्षित करने के उपाय (Steps to save Wildlife)
1. आनुवांशिक विविधता को बचाए रखने के लिए जैव मण्डल संरक्षण केंद्र प्रतिनिधि परिस्थितिकी तंत्रों में स्थापित किए गए हैं।
2. संकटशील प्रजातियों की सुरक्षा के लिए विशेष प्रयास किए गए हैं।
3. आवर्त गणना निरंतर की गई है।
4. वन्यजीवन को उसकी प्राकृतिक स्थिति में बचाए रखने के लिए राष्ट्रीय उद्यान और अभ्यारण्य स्थापित किए गए हैं। राष्ट्रीय उद्यान, वहाँ की वनस्पति, वन्यजीवन और प्राकृतिक सुन्दरता के लिए. एक सुरक्षित क्षेत्र होता है। अभ्यारण्य संकटशील प्रजातियों के लिए एक सुरक्षित क्षेत्र होता है।
5. 1973 में भारत सरकार ने एक विशेष कार्यक्रम चलाया ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ कई राष्ट्रीय उद्यान और अभ्यारण्य बाघों के लिए सुरक्षित क्षेत्र के रूप में स्थापित किए हैं। इस प्रोजेक्ट के कारण उनकी जनसंख्या 1973 में 1700 से बढकर 1999 में 3000 से अधिक हो गई है। आज भारत में 50 बाघ सुरक्षित क्षेत्र हैं जहाँ बाघ और परिणामतः सारा परिस्थितिकी तंत्र वैज्ञानिक उपायों से सुरक्षित है।
संकटापन्न प्रजातियाँ (Endangered Species)
पौधों व पशुओं की संकटशील प्रजातियों वे हैं जो इतनी दुर्लभ हैं कि शीघ्र ही विलुप्त हो जायेंगी आई यू सी एन (इंटरनेशनल यूनियन फार द कनजस्वेशन आफ नेचर) बहुत से पशुओं पर अपनी नजर रखती है और रेड डाटा पुस्तक निकालती है जिसमें दुर्लभतम पौधों व पशुओं की प्रजातियों की सूचना होती है।
कई सरकारी और गैर सरकारी संस्थाएँ जैसे आई यू सी एन डब्ल्यू डब्ल्यू एफ और यू एन ई एस सी ओ व कई गैर सरकारी संस्थाएँ भी संकटशील प्रजातियों को सुरक्षित करने के प्रयास में कार्य कर रही हैं।