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वायु Air

 

वायु Air

इस लेख  में हम वायु में उपस्थित तत्व जैसे- गैसें प्रदूषण, ग्रीन हाउस प्रभाव, वायु दाव, नमी, इत्यादि के बारे में पढ़ेंगे।

वातावरण एक निश्चित ऊँचाई तक पृथ्वी को चारों ओर से घेरे विभिन्न गैसों के मिश्रण का एक अदृश्य आवरण है। यह प्राकृतिक वातावरण का एक अभिन्न और महत्त्वपूर्ण घेरा है। इसकी भौतिक दशाएँ भीतर आते सूर्य के विकिरण के कारण तेज़ी से बदलती रहती हैं। ताप, वायु का दाब, नमी और अन्य वातावरणीय दशाएँ सूर्य की ऊर्जा के कारण बदलती रहती हैं। ये परिवर्तन कुछ घंटों के भी हो सकते हैं।

वातावरण के लाभ (Advantages of the Atmosphere)

1. पृथ्वी पर जीवन की रीढ़ (Backbone of Life on the Earth)

पशुओं और पौधों को आवश्यक गैसें वातावरण से ही मिलती हैं जो पृथ्वी पर जैव मण्डल की उपस्थिति के लिए उत्तरदायी है।

2. मौसम और जलवायु का होना (Occurrence of Weather and Climate)

मौसम और जलवायु का तथ्य केवल वातावरण में ही होता है। वे लिथोस्फियर (Lithosphere) और हाइड्रोस्फियर (Hydrosphere) को विभिन्न प्रक्रियाएँ जारी रखने के लिए प्रभावित करते हैं जिनसे जीवन चक्र घूमता रहे।

3. पृथ्वी पर लाप का संतुलन बनाए रखना (Maintaining Balance of Temperature on the Earth)

वातावरण एक ग्रीन हाउस की भाँति कार्य करता है। यह सूर्य की ऊष्मा को विकिरित कर पृथ्वी पर पहुंचने देता है परंतु पृथ्वी द्वारा विकिरित ऊष्मा का बड़ा भाग सहेज लेता है। इसलिए सर्दियों में शाम को या रात के प्रथम पहर हवा पृथ्वी के आवरण के ठण्डे होने के बाद भी कुछ समय तक गर्म रहती है।

4. पृथ्वी का कवच की तरह कार्य करना (Acting Like a Shield on the Earth

अंतरिक्ष से पृथ्वी पर गिरते उल्काओं के अधिकांश टुकड़े वायु में ही विलीन हो जाते हैं। वातावरण की अनुपस्थिति में उल्काएँ पृथ्वी की सतह से टकरा सकती हैं जिनका परिणाम भयानक हो सकता है। इसलिए वातावरण पृथ्वी के कवच की तरह कार्य करके इसकी रक्षा करता है।

5. सूर्य की पराबैंगनी किरणों से सुरक्षा(Protection from Ultraviolet Rays)

वातावरण सूर्य की पराबैंगनी किरणों के विकिरण से हमारी  सुरक्षा करता है, ये किरणें सीधे सूर्य से आती हैं।

6. संचार में सहायक (Helpful in Communication)वायु Air

वातावरण की ऊपरी परत की गैसों में विद्युत आवेशित कण होते हैं जिन्हें आयन कहते हैं, जो रेडियो तरंगों को परावर्तित कर वापस पृथ्वी पर भेज देते हैं और इस प्रकार संचार में सहायक होते हैं। यह रेडियो टेलिविज़न इत्यादि के लिए अत्यंत सहायक है।

वातावरण का संघटन (Composition of the Atmosphere)

वातावरण विभिन्न गैसों, धूल कणों और भाप का मिश्रण है। इसमें 78 प्रतिशत नाइट्रोजन और 21 प्रतिशत आक्सीजन होती है। इसका 99 प्रतिशत भाग नाइट्रोजन और आक्सीजन से मिलकर बना होता है। अन्य गैसें, भाप और धूल कण आदि बाकी के प्रतिशत वातावरण का निर्माण करते हैं।

वातावरण में उपस्थित  गैसों की मात्रा

गैसों का नाम                                 मात्रा

नाइट्रोजन                                      78%

ऑक्सीजन                                     21%

ऑर्गन                                           0.94%

कार्बन डाईऑक्साइड                       0.03%

हाइड्रोजन                                      0.01%

ओजोन                                          0.000004%

गैसों का महत्त्व (Importance of Gases)वायु Air

वातावरण की सभी गैसें अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। उनकी उपस्थिति वातावरण को सुरक्षा प्रदान करती है।

1. नाइट्रोजन (Nitrogen)वायु Air

यह पौधों में प्रोटीन के निर्माण में मदद करती है। इसकी उपस्थिति के कारण आग नियंत्रण में रहती है, इसके बिना या कम मात्रा में मानव के लिए आग पर नियंत्रण संभव न होता

2. आक्सीजन (Oxygen)

यह जीवनदायी गैस है। सभी जीव ऑक्सीजन के माध्यम से साँस लेते हैं और जीवन प्रक्रिया को चलायमान रखते हैं।

3. ओज़ोन (Ozone)

यह हमें सूर्य की पराबैंगनी किरणों से बचाती है जो हमारी त्वचा के लिए हानिकारक हैं।

4. कार्बन डाईआक्साइड (Carbon-dioxide)

यह पौधों के लिए आवश्यक है। पृथ्वी की ऊष्मा को बाहर जाने से बचाकर यह ग्रीन हाउस जैसा प्रभाव उत्पन्न करती है। जल वाष्प और धूल कण भी हमारे वातावरण के घटक हैं, उनकी उपस्थिति भी किसी न किसी रूप में उपयोगी है।

वातावरण की संरचना (Structure of the Atmosphere)

परतों से बना वातावरण पृथ्वी की एक निश्चित ऊँचाई तक फैला है। इसकी वाहूय सीमा ज्ञात नहीं है। 1000 किमी की ऊँचाई पर भी वातावरणीय गैसों की सूक्ष्म मात्रा पाई गई है। वातावरण को मोटे तौर पर पाँच परतों की संरचना में विभाजित किया जा सकता है

1. ट्रोपोस्फियर (Troposphere) ( क्षोभमण्डल)

वातावरण की निम्नतम परत, पृथ्वी की सतह के निकट, जिसमें हवा का अधिकतम घनत्व होता है। मौसम का सारा तथ्य इसमें ही होता है। ट्रोपोस्फियर भूमध्य क्षेत्र में 18 किमी की ऊँचाई तक फैला है जबकि ध्रुवीय क्षेत्र में इसकी ऊँचाई 8 किमी तक है वातावरण का मुख्य भाग होने के कारण इसमें आक्सीजन का उच्च प्रतिशत होता है। मौसम और जलवायु का तथ्य यहीं होता है।

धूल कण और जल वाष्प यहाँ अधिकांश मिलती है। जैसे-जैसे हम ट्रोपोस्फियर में ऊपर जाते हैं ताप गिरता जाता है। प्रत्येक 165 मीटर की ऊँचाई पर 1 डिग्री सेंटीग्रेड की गिरावट आती है। पृथ्वी की सतह के निकटतम, जहाँ मानव इसके सम्पर्क में आता है, क्षोभमण्डल अधिक महत्त्वपूर्ण है।

2. स्ट्रेटोस्फियर (Stratosphere) (समतापमण्डल)

पृथ्वी की दूसरी परत सतह से 50 किमी की ऊँचाई तक जाती है। इसकी मोटाई ध्रुवों पर अधिक और भूमध्य रेखा पर कम होती है। इस परत में पाई जाने वाली अधिकांश ओज़ोन गैस हमें परबैंगनी किरणों से बचाती है। यहाँ पर जलवायु तथ्य नहीं होता। इसलिए हवाई उड़ानों के लिए यह आदर्श क्षेत्र है। ओज़ोन के कारण ही ताप ऊँचाई के साथ-साथ घटता है।

3. मीज़ोस्फियर (Mesosphere) (मध्यम मण्डल )

50 से 80 किमी की ऊँचाई तक वातावरण बहुत सघन हो जाता है। यहाँ पर ताप गिरकर -100 डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुँच जाता है और गैसों का घनत्व बहुत कम हो जाता है।

4. आयनोस्फियर (lonosphere) (आयनमण्डल)

यह मीज़ोस्फियर के ऊपर 400 किमी की ऊँचाई तक होती है। इसके निचले हिस्से में गैसों के

अणु एक प्रकार का विद्युत आवेश पा लेते हैं और आयन कहलाते हैं जिस कारण इसे आयनोस्फियर कहते हैं। इसकी उच्चतम सीमा तक ताप

1000 डिग्री सेंटीग्रेड तक पहुँच जाता है।

5. एक्जोस्फियर (Exosphere) ( वाहूय मण्डल)

यह वातावरण की वाह्य मण्डल परत है। गैसों की मात्रा इस क्षेत्र में काफी कम होती है और घनत्व अत्यंत कम होता है। इसकी कोई सीमा नहीं है और अंततः यह अंतर-गृहीय अंतरिक्ष से मिलता है।

वायु प्रदूषण  Air Pollution

प्रत्येक वर्ष लाखों टन अपशिष्ट पदार्थ वातावरण में डाले जाते हैं। इन्हें वायु प्रदूषक कहते हैं। ये दो प्रकार के होते हैं- ठोस तथा गैसीय। धूल और जीवाणु ठोस प्रदूषक हैं। अक्सर ज्वालामुखी धूल प्रदूषण के मुख्य स्रोत बनते हैं। मानवीय गतिविधियों विशेषत नगरों में, बड़ी मात्रा में ठोस प्रदूषक वातावरण में उड़ेलती हैं।

गैसीय प्रदूषण का भयंकर स्रोत है वाहनों से निकला धुआँ जिसमें कार्बन मोनो आक्साइड गैस होती है। यह अत्यंत ज़हरीली होती है। प्राकृतिक कोहरे और पदार्थों का एक मिश्रण गम्भीर स्वास्थ्य समस्याएँ उत्पन्न करता है। ओज़ोन का निम्न स्तर भारी यातायात और उद्योगों के द्वारा निष्काशित वायु प्रदूषण के कारण हैं।

वायु प्रदूषकों के स्रोत को नियंत्रित करने के लिए कई नियम कानून बनाए गए हैं। परंतु इससे लड़ने के लिए हमें स्वयं ही सचेत होना होगा।

ग्रीन हाउस प्रभाव (Green House Effect)

भूमि और जल सूर्य की ऊष्मा से गर्म हो जाते हैं। गर्म होने के बाद ये दोनों ही ऊष्मा को वातावरण की ओर विकिरत करते हैं। यह बाहर जाती ऊष्मा कार्बन डाई आक्साइड और जल वाष्प द्वारा रोक ली जाती है। यह बंद ऊष्मा धरती को गर्म कर देती है जिसे ग्रीन हाउस प्रभाव कहते हैं। कई कारणों से धरती गर्म होती जा रही है जिसे वैश्विक गर्माहट कहते हैं। आज यह अत्यंत गम्भीर वातावरणीय समस्याओं में से एक है।

मौसम और जलवायु के तत्व (Elements of Weather and Climate)

मौसम और जलवायु (Weather and Climate)

मौसम और इसके तत्वों के अध्ययन को जलवायु विज्ञान कहते हैं। मौसम प्रति घंटे और प्रतिदिन बदलता रहता है। जलवायु एक स्थान विशेष का औसत मौसम है जो उसकी विशेषता होती है। ताप, नमी, वर्षा, मेघ, धूप, दाब और हवा मौसम व जलवायु के मूल तत्व हैं। हम जो मौसम का पूर्वानुमान टीवी, रेडियो या अखबार में पाते हैं,

वह मौसम की विभिन्न सूचनाओं के आधार पर वैज्ञानिकों द्वारा तैयार करके संसार में वितरित किया जाता है। एक मौसम केंद्र वह स्थान होता है जहाँ मौसम सम्बंधी आंकणे निरंतर एकत्रित किए जाते हैं। पानी के जहाज़, गुब्बारे और उपग्रहों का प्रयोग मौसम सम्बंधी आंकड़े एकत्रित करने में किया जाता है।

मौसम को मापने के उपकरण (Instruments to Measure Weather)

1. थर्मोमीटर (Thermometer): यह वातावरण का ताप मापता है। इससे मानयों का शारीरिक तापमान भी मापा जाता है।

2. स्टीवेंस की स्क्रीन (Stevenson’s Screen): यह वर्मोमीटर को सीधी धूप से बचाता है।

3. सिक्स का अधिकतम और न्यूनतम थर्मोमीटर (Six’s Maximum and Minimum): यह दिन का अधिकतम और न्यूनतम तापमान

मापता है।

4. बैरोमीटर (Barometer): यह हवा का दाद मापता है।

5. विण्ड वेन (Wind Vane): यह हवा की दिशा जानने में मदद करता है।

6. एनेमोमीटर (Anemometer): यह हवा की गति जानने में मदद करता है।

7. रेन गेज (Rain Gauge): यह वर्षा की दर नापता है।

8. हेयटोग्राफ (Hyetograph): यह वर्षा का लगातार रिकार्ड उपलब्ध कराता है।

ताप को वैज्ञानिकों के नाम पर सेल्सियस और फैरेनहाइट-डिग्री में नापा जाता है, सेल्सियस स्केल ताप को मापने का अत्यंत सामान्य स्केल है। यही स्केल हमारे देश में भी प्रयोग किया जाता है, यह एक डेसिमल स्केल है जिसमें 0 से 100 डिग्री तक का ताप का मापन होता है। 10 डिग्री पानी के जमने का बिंदु है और 100 डिग्री पानी के उबलने का बिंदु है।

थर्मोमीटर सदैव छाया में भूमि से एक मीटर की ऊँचाई पर रखे जाते हैं। इसके लिए एक लकड़ी का बक्सा, जिसे स्टीवेंसन स्क्रीन कहते हैं, जिसके चारों ओर दरारें होती हैं, जिससे हवा मुक्त रूप से अंदर आ सके, प्रयोग किया जाता है। थर्मोग्राफ ताप का 24 घंटे के समय में अधिकतम और न्यूनतम तापमान का एक निरंतर रिकार्ड उपलब्ध कराता है।

दाब (Pressure)

“हवा के ऊर्ध्व स्तम्भ द्वारा प्रति इकाई क्षेत्र पर पड़े दाब को वायुमंडलीय दाब कहते हैं। दाब को पारे के सेंटीमीटर या इंचों में मापा जाता है, जो पारे के स्तम्भ की ऊँचाई की एक सत्य माप है। दाब की एक अन्य इकाई मिलिबार है, इसे बैरोमीटर द्वारा मापा जाता है।

एनेराइड बैरोमीटर (Aneroid Barometer)

आजकल एनेराइड बैरोमीटर का प्रयोग वायुमंडलीय दाब को मापने में किया जाता है। यह हवा द्वारा एक धातुई प्लेट पर लगाई गई शक्ति को मापता है।

एनेराइड बैरोमीटर का प्रयोग एल्टीमीटर में किया जाता है जो हवाई जहाज़ों में लगाए जाते हैं। एक एल्टीमीटर उड़ान के दौरान जहाज़ की ऊँचाई बताता है। बेरोग्राफ जो दाब का निरंतर रिकार्ड देता है एक अन्य उपकरण है जिसमें एनेराइड बैरोमीटर का प्रयोग होता है।

एनेमोमीटर (Anemometer)

हवा की तीव्रता को निरंतर मापने वाले उपकरण को एनेमोग्राफ कहते हैं। बिना माप के कोई हवा की तीव्रता का अनुमान नहीं कर सकता। 1. जब आप पुएँ को सीधा ऊपर चढ़ते पाते हैं, तो वायु की गति किमी प्रति घंटा से कम होती है।

2. जब वायु की गति 40 किमी प्रति घंटा से अधिक होती है तो छाता पकड़े रखना कठिन होता है। 3. 100 किमी प्रति घंटा से अधिक गति की वायु तूफान बन जाती है जिसमें वृक्ष गिर जाते हैं।

नमी (Moisture)

हवा में नमी जल वाष्प के रूप में होती है। आद्रता का अर्थ है हवा की नमी सापेक्षिक आद्रता मौसम विज्ञान में प्रयुक्त अत्यंत सामान्य विधि है। संतृप्त हवा में 100 प्रतिशत की सापेक्षिक आद्रता और शुष्क हवा में 0 प्रतिशत सापेक्षिक आद्रता होती है।

हाइग्रोमीटर (Hygrometer)

आद्रता हाइग्रोमीटर नामक उपकरण की मदद से मापी जा सकती है। एक सरल हाइग्रोमीटर दो थर्मोमीटर नम और शुष्क, से मिलकर बना होता है। थर्मोमीटर का बल्ब हवा में शुष्क रखा जाता है जो शुष्क हवा का ताप मापता है। थर्मोमीटर का दूसरा बल्ब धागों की मदद से नम रखा जाता है जो नम हवा का ताप मापता है।

रेन गेज (Rain Gauge)

यह वर्षा की दर नापता है। इसमें एक धातुई सिलिण्डर एक बर्तन और एक कीप के साथ शीशे का स्केल होता है। कीप की परिधि बर्तन की परिधि के बराबर होती है जिसमें वर्षा के पानी एकत्रित होता है। वर्षा का पानी 24 घंटे के लिए एकत्रित किया जाता है। यह शीशे के स्केल से मापा जाता है। वर्षा की दर को मिलीमीटर में मापा जाता है। बर्फ गिरने और ओलों को पिघलाकर पानी की मात्रा से मापा जाता है। वार्षिक वर्षा को सामान्यतः सेंटीमीटर में व्यक्त किया जाता है।

पवन (Wind)

भूमि के समतल चलती वायु की गति के उच्च दाब क्षेत्रों से निम्न दाब क्षेत्रों में आने को पवन कहते हैं। पवन को दिशा के आधार पर नाम दिया जाता है, जहाँ से यह बहती है। पूर्व से बहने वाली पवन को पूर्वी पवन और पश्चिम से बहने वाली पवन को पश्चिमी पवन कहते हैं। पवन की दिशा को विंड वेन की मदद से देखा जाता है। विंड वैन का तीर पवन की दिशा की ओर संकेत करता है और पवन की दिशा विंड वेन के एक डायल पर दिखाई जाती है। पवन की गति को एनेमोमीटर की मदद से मापा जाता है।

(एक नए टैब में खुलता है)

 

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