
अच्छा स्वास्थ्य balanced diet and health
स्वस्थ शरीर और अच्छी समझ ईश्वर के ये दो बड़े वरदान हैं। ये न हो तो मनुष्य का जीवन बड़ा ही नीरस हो जाता है। किसी ने ठीक ही कहा है कि “सच्चा सुख निरोगी काया”। स्वास्थ्य का अर्थ केवल शरीर का ही ठीक होना नहीं, बल्कि मन का भी ठीक होना आवश्यक है। मन का ठीक होना आप पर निर्भर करता है। “जैसा खाओगे अन्न, वैसा होगा मन” और वैसा ही होगा “तन” । कहा भी गया है कि स्वास्थ्य ही धन है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization) के अनुसार स्वास्थ्य किसी व्यक्ति विशेष की वह अवस्था होती है जिसमें वह मानसिक, शारीरिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक रूप से कुशलता लिए हुए हो। स्वास्थ्य एवं स्वस्थ व्यक्ति शरीर में वात-पित्त एवं कफ की समान अवस्था तथा संतुलन हो स्वास्थ्य है।
मन, बुद्धि, आत्मा और शरीर से स्वस्थ एवं सन्तुष्ट होना विशेषकर किसी भी शारीरिक दुःख या दर्द का नहीं होना ही स्वास्थ्य
है। व्यक्ति को स्वस्थ्य रहने के लिए अपनी दैनिक क्रियाओं और व्यवहार, आचरण तथा आदत में सुधार की जरूरत होती है।
किसी विद्वान ने ठीक ही कहा कि
भोजन आधा पेट कर द्विगुना पानी पी। त्रिगुन श्रम चौगुन हँसी वर्ष सवा सौ जी ।।
“हितभुक् मितभुक्-ऋतुभुक” अर्थात् हितकारी भोजन, कम भोजन तथा ऋतु के अनुसार भोजन करना
आवश्यक है।
स्वास्थ्य सम्बन्धी कुछ सामान्य नियम ★ अपने आस-पड़ोस की साफ सफाई का ध्यान रखना।
- ठीक ढंग से खड़ा होना, बैठना, चलना तथा दौड़ना।
- प्रतिदिन सुबह की सैर करना।
★ ताजा एवं पौष्टिक भोजन निर्धारित समय पर खाना।
- ऋतु के अनुसार वेश-भूषा
★ नासिका से श्वास लेने का अभ्यास।
समय से शयन व जागरण।
दिन में कम से कम चार बार खुलकर हँसना।
सन्तुलित आहार
किसी भी प्राणों को जीवित रहने के लिए भोजन की आवश्यकता होती है। प्रत्येक प्राणी अपनी शारीरिक संरचना के अनुरूप भोजन ग्रहण करता है। यदि हम कम या अपूर्ण भोजन करेंगे, तो हमारे शरीर को पूरी शक्ति नहीं मिलेगी और हम कमजोर हो जायेंगे। अत: हमें सन्तुलित भोजन करना चाहिए।
संतुलित आहार की विशेषताएँ ● कर्जा प्रदान करने वाले पदार्थ पर्याप्त मात्रा में होते हैं।
● प्रत्येक व्यक्ति के व्यवसाय, आयु, लिंग और जलवायु के अनुसार होता है। • इसमें पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन और खनिज लवण प्राप्त होते हैं।
- इसमें सुरक्षात्मक पोषक तत्वों को प्रधानता होती है, इसके अन्तर्गत विटामिन्स सम्मिलित होते हैं जो दूध, फल शाकभाजी आदि से प्राप्त होते हैं।
आहार के प्रमुख तत्व
(1) कार्बोहाइड्रेड्स (2) प्रोटोन (3) वसा (४) विटामिन (5)खनिज लवण (6) जल
कार्बोहाइड्स
यह ऊर्जा का प्रमुख है। ये कार्बन हाइड्रोजन तथा ऑक्सीजन का यौगिक है। यह शरीर में शक्ति बनाए रखता है। यह यदि कम हो जाए तो कमजोरी आ जाती है और अधिक हो जाए तो मोटापा बढ़ जाता है। ये तीन प्रकार का होता है
(1) स्टार्च युक्त (2) ग्लूकोज युक्त (3) फाइवर युक्त
स्टार्च युक्त
रोटी, चावल, आलू, दूध, शहद, प्यार, गेहूँ, मक्का, बाजरा, शकरकन्द आदि।
ग्लूकोज (शर्करा युक्त)
खजूर, गन्ना, चुकन्दर, अंगूर, दूध एवं फल
फाइवर युक्त
गेहूं की रोटो, सब्जियों एवं फलों में पाया जाता है।
प्रोटीन
शारीरिक विकास के लिए अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। शारीरिक चुस्ती-फुर्ती, उत्साह व शक्ति के लिए बहुत आवश्यक है। यह शरीर की कोशिकाओं (सेल्स) को बनाने, विकसित करने एवं मजबूत करने के लिए कार्य करता है। कार्बोहाइड्रेड शरीर को ऊर्जा देता है। अतः इसे प्रातः काल लेना चाहिए जिससे हम पूरे दिन कार्य करते रहते हैं।
प्रोटोन मृत कोशिकाओं को पुनः बनाती है अतः सायं काल लेना चाहिए, जिससे दिन भर काम करने के उपरान्त जो भी कोशिकाएँ मृत हो जाती है वह पुनः बन सकें।
साधनों के आधार पर प्रोटीन दो प्रकार के होते हैं-
(1) जन्तु प्रोटीन, (2) वनस्पति प्रोटीन
(1) जन्तु प्रोटीन
जन्तु एवं पशुओं से प्राप्त होता है जैसे दूध, दही, पनौर तथा अण्डा, मांस-मछली आदि।
(2) वनस्पति प्रोटीन-
मूंग, मसूर, सोयाबीन, सेम, मटर, उड़द, हरी सब्जियाँ, गेहूँ, जौ, चना, बाजरा, मक्का,
सूखे मेवे, मूंगफली आदि।
3. वसा
यह चर्बीदार अम्ल तथा ग्लिसरीन का मिश्रण है। वसा ऊर्जा का सबसे शक्तिशाली स्रोत है। यह कार्बोहाइड्रेट्स व प्रोटीन की तुलना में शरीर को दो गुनी ऊर्जा प्रदान करता है। बहुत अधिक शारीरिक श्रम करने वालों के लिए बहुत आवश्यक है, परन्तु जो लोग अधिक शारीरिक श्रम नहीं करते उन्हें अधिक वसा नहीं लेनी चाहिए अन्यथा वह मोटापे का कारण बनता है।
साधन एवं स्त्रोत
सामान्यतः वसा दो प्रकार से प्राप्त होती है-
(1) पशु (2) वनस्पति
(1) पशु वसा-
पशुओं की चर्बी, अण्डे की जर्दी, मछली का तेल, घी, दूध, मलाई, मक्खन आदि के रूप में पशुओं से प्राप्त होती है।
(2) वनस्पति वसा-
सरसों, नारियल, मूंगफली तथा तिल का तेल आदि तेल से बादाम, काजू आदि सूखे मेवों के रूप में भी प्राप्त होती है।
(4) विटामिन्स-
यह हमारे जीवन के लिए अत्यन्त आवश्यक पदार्थ है। इसकी कमी से अनेक प्रकार के रोग उत्पन्न हो जाते हैं। यह हमारे शरीर को विभिन्न अंगों और उनकी क्रियाविधि को ठीक से संचालित करते हैं तथा स्वस्थ रखते हैं। विटामिन के निम्नलिखित प्रकार है
विटामिन ‘ए’
यह वसा में घुलनशील होता है, हमारी आँखों को ठीक रखता है और त्वचा को सुन्दर बनाता है। विशेष रूप से फलों, दूध, दूध से निर्मित अन्य पदार्थों, पीले फल, हरी सब्जियों आदि में पाया जाता है।
विटामिन बी
यह जल में घुलनशील होता है। इसे थायमिन नाम से भी पुकारा जाता है। यह हमारी पाचन प्रणाली को ठीक रखता है। इसकी कमी से बेरी-बेरी नामक रोग, मुँह का अल्सर, पैरों में सूजन आना जैसे रोग हो जाते हैं। विटामिन बी अनेक रूपों में मिलता है जैसे- B1, B2, B3, B4, B5, B12 आदि। यह सभी अन्नों, मांस, अण्डा, मटर, सेम, सोयाबीन, गाजर, गोभी, लहसुन, दूध, टमाटर, सेव आदि में पाया जाता है।
विटामिन ‘सी’
यह जल में घुलनशील सफेद दानेदार पदार्थ है। यह गन्धहीन है
तथा उबालने पर नष्ट हो जाता है। इसे शरीर में संचय नहीं किया जा सकता। यह जोड़ों में काम आने वाले तन्तुओं के लिए उपयोगी है। रक्त की लाल कणिकाओं का निर्माण कर रक्त को शुद्ध करता है। इसके पर्याप्त प्रयोग से तपेदिक व निमोनियाँ जैसे रोग नहीं होते। इसकी कमी से दाँतों में पायरिया मसूड़ों में स्कर्वी नामक रोग हो जाता है। यह आँवला सन्तरा, नींबू, अमरूद, अंगूर, टमाटर, मौसमी, अनन्नास, माल्टा, हरी मिर्च, करेला, पपीता, अनार, अण्डा, दूध, काजू आदि में भरपूर मात्रा में पाया जाता है।
विटामिन ‘डी’
यह वसा में घुलनशील सफेद रंग का रवेदार व गन्धहीन विटामिन है। इसे शरीर में संचय किया जा सकता है। यह हड्डियों व दाँतों को मजबूत बनाता है। बच्चों में सूखा रोग से रक्षा करता है। शरीर की वृद्धि में सहायक, छोटे बच्चों की संक्रामक रोगों से रक्षा कराता है। यह सूर्य के प्रकाश से सर्वाधिक मिलता है। कैल्शियम की मात्रा बढ़ाना इसकी विशेषता है। जो लोग धूप में काम करते हैं। उनमें इसकी मात्रा अधिक होती है।
विटामिन ‘ई’
यह विटामिन वसा में घुलनशील है। यह हमारे जननांगों को स्वस्थ रखता है। महिलाओं तथा बालिकाओं के लिए अत्यावश्यक है। यह विशेष रूप से गेहूँ, सरसों, धनियाँ, हरी सब्जियों, दूध, अण्डा, बिनौला, मछली के तेल आदि में पाया जाता है।
विटामिन ‘के’
यह भी वसा में घुलनशील विटामिन है। यह घाव हो जाने पर खून को बहने से रोकता है। इसमें फाइब्रोजिन नामक तत्व पाये जाने के कारण रक्त का थक्का जमाने में सहायक है, विशेषत: गर्भवती महिलाओं के लिए लाभकारी है। यह विशेष रूप से दूब घास व हरे पत्तों आदि में पाया जाता है।
विटामिन ‘यू’
यह हमारी आँतों की झिल्लियों को स्वस्थ रखता है। यदि किसी को अल्सर हो गया हो तो,
विटामिन ‘यू’ उसे जल्दी ठीक करता है। यह पत्तों में विशेष रूप से (पत्ता गोभी में पाया जाता है।
खनिज लवण (मिनरल्स)
यह शारीरिक विकास के लिए विशेष महत्त्वपूर्ण एवं आवश्यक है। मानव शरीर
को निम्नांकित खनिज लवणों की आवश्यकता होती है।
(1) कैल्शिय
यह हट्टियों एवं दाँतों को मजबूत करता है। यह शरीर के रंग को निखारता है। बाल घने व मजबूत करने में सहायता करता है। यह हरी सब्जियाँ, दूध, दही, छाछ आदि में पाया जाता है।
(2) पोटेशियम (Potassium)
यह कोशिकाओं तथा रक्त में पाया जाता है। इसका मुख्य कार्य शरीर के तन्तुओं का निर्माण करना है। यह मांस पेशियों के संकुचन, हृदय की धड़कन तथा स्नायुओं की संवेदन शक्ति को करता है। यह शरीर में अम्ल तथा क्षार के संतुलन को बनाए रखता है।
नियमित
(3) फास्फोरस (Phosphorus)
यह शरीर में उपलब्ध सभी खनिज लवणों की कुल मात्रा का 25% होता है। शरीर के फास्फोरस का 80% भाग शरीर को अस्थियों तथा 20% भाग कोमल ऊतकों में पाया जाता है।
(4) आयोडीन (Iodine)
आयोडीन शरीर की क्रियाशीलता को बनाए रखने वाला एक उपयोगी खनिज लवण है। इसका मुख्य कार्य थाइराइड ग्रन्थियों की क्रियाशीलता को बनाना होता है। इसकी कमी से बच्चों में केंटीन तथा प्रौढ़
व्यक्तियों में मैक्सोडीगा नामक रोग हो जाता है।
(5) लोहा (Iron)
यह खनिज लवण रक्त में उपस्थित हीमोग्लोबिन का मुख्य अंग है। इसको कुछ मात्रा अस्थि, मज्जा, यकृत, गुर्दी तथा मांस-पेशियों में भी विद्यमान होती है। इसकी कमी से एनीमिया रोग हो जाता है।
(6) सोडियम क्लोराइड (Sodium Chloride)
यह सामान्य लवण कहलाता है। शरीर के सभी तरल द्रव्य में यह सोडियम के रूप में पाया जाता है। सोडियम की कुछ मात्रा हड्डियों में भी पाई जाती है। इसके उपयोग से भोजन स्वादिष्ट
बनता है। सोडियम को अधिकता से शरीर पर सूजन आ जाती है।
(7) गन्धक (Sulphur)
गंधक प्रोटीन का ही एक अंश है। यदि भोजन में प्रोटीन की मात्रा पर्याप्त है तो इसकी आवश्यकता स्वतः ही पूरी हो जाती है। इसकी कमी से बालों और नाखूनों की वृद्धि रुक जाती है।
(8) मैग्नीशियम (Magnesium)-
यह हड्डी, दाँत, कोशिका तथा रक्त में पाया जाता है। यह कैल्शियम और फास्फोरस को क्रियाशील बनाता है। इसकी कमी से स्नायु सम्बन्धी रोग तथा ऐंटन के लक्षण प्रकट होने लगते हैं।