

स्वास्थ्य का अर्थ एवं परिभाषा Definition and Meaning of Health स्वास्थ्य शिक्षा HEALTH EDUCATION
स्वास्थ्य को सामान्यतः रोग से मुक्त शरीर के रूप में ही समझा जाता है, परन्तु वास्तव में रोगमुक्त शरीर का हृष्ट-पुष्ट होना भी आवश्यक है। यह जीवन का एक विशिष्ट गुण है, जिसके अनुसार व्यक्ति सुखी जीवन व्यतीत करता है तथा साथ ही सर्वाधिक क्रिया करने के लिये समर्थ रहता है अतः यह कहा जा सकता है कि शरीर के विभिन्न अंगों की बनावट व दशा तथा अनेक कार्यों के करने की शक्ति का समुचित संतुलन ही स्वास्थ्य है।
शरीर को निम्न प्रकार से परिभाषित किया गया हैHEALTH EDUCATION
1. आयुर्वेद के अनुसार, ” शरीर में वात, पित्त व कफ की समान अवस्था तथा संतुलन ही स्वास्थ्य है। “
2. ओबरट्यूफर के अनुसार, “ स्वास्थ्य किसी भी प्राणी की वह स्थिति है जो उसकी समूची शक्तियों के काम
3. जे. एफ. विलियम्स के अनुसार, “ स्वास्थ्य जिंदगी की गुणवत्ता है जो व्यक्ति को अधिक से अधिक जीने तथा
अच्छा कार्य करने की सामर्थ्य प्रदान करती है।”
उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट हो जाता है कि स्वास्थ्य का अर्थ शरीर का रोग मुक्त होना ही नहीं है अपितु शरीर रोगमुक्त होने के साथ-साथ शरीर का मानसिक व संवेगात्मक रूप से भी स्वस्थ होना होता है। वास्तव में स्वास्थ्य की धारणा के तीन पक्ष है। शारीरिक, मानसिक तथा संवेगात्मक पक्ष इनसे युक्त व्यक्ति कठिन से कठिन कार्य करने की क्षमता तथा हृदय में उमंग व उत्साह रखता है।
क्या आप स्वस्थ हैं? विचार करें कि
1. क्या आप अपनी वास्तविक आयु से कम दिखायी देते हैं?
2. क्या आपकी आँखों में जीवन की चमक है?
3. क्या आपका चेहरा लालिमायुक्त है?
4. क्या आप सदैव प्रसन्नचित रहते हैं?
5. क्या आपको खुलकर भूख लगती है?
6. क्या आपका पेट सदैव ठीक रहता है?
7. क्या आपको समय से गहरी नींद आती है?
उत्तर यदि हाँ में है तो आप एक स्वस्थ व्यक्ति है, अन्यथा स्वयं के स्वास्थ्य के संदर्भ में विचार करना चाहिए।
स्वास्थ्य रक्षा की विधियाँHealth Protected Methods
वर्तमान समय में स्वास्थ्य की रक्षा की दृष्टि से अनेक विधियाँ प्रचलन में है। जिनमें से कुछ निम्न हैं
1. चलचित्रों के माध्यम से बालक के आंतरिक एवं बाह्य विकास के लिये चलचित्रों की सहायता ली जाती है। उसके विभिन्न अंगों, संस्थानों की जाँच तथा रोगों का ज्ञान चलचित्रों के माध्यम से कराया जाता है, जैसे- अल्ट्रासाउंड, एक्सरे, आदि।
2. भाषणों के माध्यम से भाषणों के माध्यम से भी स्वास्थ्य की दृष्टि से समय-समय पर मार्गदर्शन किया जाताहै। भाषणों के माध्यम से छात्र छात्राओं को स्वास्थ्य रक्षा सम्बन्धी ज्ञान व उसके महत्त्व के बारे में ज्ञान दिया जाता है।”
3. स्वास्थ्य प्रदर्शन के माध्यम से स्वास्थ्य प्रदर्शन के द्वारा भी स्वास्थ्य की दृष्टि से मार्गदर्शन दिया जाता है। विभिन्न क्षेत्रों में उत्तम स्वास्थ्य का प्रदर्शन जैसे- बॉडी बिल्डर, पहलवान आदि अपने स्वास्थ्य का प्रदर्शन कर क्षेत्र के युवाओं को स्वास्थ्य के प्रति जागरूक करते हैं।
4. स्वयंसेवी संस्थाओं के माध्यम से विभिन्न स्वयंसेवी संस्थान जैसे N.G.O. द्वारा भी ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में नुक्कड़ नाटकों व स्वास्थ्य सम्बन्धी कैम्प के माध्यम से लोगों को जागरूक करने का प्रयास किया जाता है।
स्वास्थ्य के लक्षण, Health Symptoms
1. बाल सधन, चिकने व मुलायम होने चाहिए।
2. आँखों के नीचे काले धब्बे या निशान अस्वस्थता का लक्षण है। आखों में स्वाभाविक चमक होनी
3. दाँत स्वस्थ, सुन्दर व साफ होने चाहिए।
4. शरीर का भार आयु व लम्बाई के अनुपात में होना चाहिए।
5. शारीरिक ढाँचा संतुलित एवं सधा हुआ होना चाहिए।
6. शरीर के पाचन तंत्र को ठीक प्रकार से कार्य करना चाहिए।
मानव की अस्थियाँ तथा माँसपेशियाँ हमारे शरीर में अनेक संस्थान हैं, और प्रत्येक संस्थान में अनेक प्रकार की रचनाएँ हैं। दूसरे शब्दों में हम यह भी कह सकते हैं कि मनुष्य का शरीर एक जटिल मशीन है, जिसको जानने के लिये शरीर के अंग के प्रत्येक छोटे-बड़े पुर्जों का अध्ययन करना आवश्यक है। हमारे शरीर के इन संस्थानों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण संस्थान है- अस्थि संस्थान और माँसपेशियाँ शरीर के इन दोनों संस्थानों का विवरण निम्नलिखित है।
अस्थि संस्थान
अस्थियाँ मानव की शारीरिक संरचना का निर्माण करती हैं। जो सामान्य भाषा में अस्थि पंजर या कंकाल तंत्र कहलाती हैं। अस्थियों के कारण ही हमारा शरीर आकार ग्रहण करता है, इसके अभाव में शरीर केवल माँस का लोथड़ा बनकर रह जाता। शरीर को स्वस्थ एवं क्रियाशील बनाये रखने के लिये, दुर्घटनाओं से उत्पन्न चोटों के उपचार के लिये अस्थि संस्थान, संधियों तथा माँसपेशियों का पूरा ज्ञान होना अति आवश्यक है। मानव शरीर में कुल 206 अस्थियाँ होती है। इन 206 अस्थियों में से सिर में 28, धड़ में 58, दोनों हाथों में 60 तथा दोनों पैरो में 60 अस्थियाँ होती है।
अस्थि संस्थान के कार्य
1. अस्थि कंकाल मनुष्य को आकार स्वरूप तथा स्थिरता प्रदान करता है।
2. अस्थि कंकाल मनुष्य के सीधा खड़े होने, बैठने, लेटने, चलने आदि प्रक्रियाओं में सहायक होता है।
3. अस्थियाँ शरीर को लचीला बनाती है।
4. अस्थियाँ शरीर की विभिन्न संधियों का निर्माण करती है।
5. अस्थियाँ शरीर को गति प्रदान करती हैं।
6. अस्थि संस्थान शरीर के अनेक संवेदनशील अवयवों जैसे- हृदय, मस्तिष्क, फेफड़े, यकृत आदि की रक्षा करता है।
7. अस्थियाँ आंतरिक दबाव को नियंत्रित करने में सहायक होती हैं।
अस्थियों को शरीर के आकार की दृष्टि से व अंगीय दृष्टि से अलग-अलग भागों में बाँटा गया है।
(क) आकार की दृष्टि से
1. चपटी अस्थियाँ चपटी अस्थियाँ टेढ़ी-मेढ़ी होती हैं, मानव शरीर में ये अस्थियाँ कपाल, स्कंध, नितम्ब तथा चेहरे में पायी जाती हैं।
2. लम्बी अस्थियाँ लम्बी अस्थियाँ पैरों तथा भुजाओं में पायी जाती हैं। इनका मध्य भाग मुलायम तथा छोर स्पंजी होते हैं। अन्य अस्थियों की तुलना में लम्बी अस्थियाँ शीघ्र टूट जाती हैं।
3. छोटी अस्थियाँ- ये अस्थियाँ हाथ-पैर की अंगुलियों में पायी जाती हैं।
4. अनियमित अस्थियाँ मेरुदण्ड की अस्थियाँ इस श्रेणी में आती हैं।
5. गोल अस्थियाँ- ये अस्थियाँ कलाई तथा टखनों में पायी जाती हैं। ये अस्थियाँ गोलाकार होती हैं; ये अस्थियाँ आकस्मिक आघातों से भी नहीं टूटती हैं।
(ख) अंगीय दृष्टि से अंगीय दृष्टि से अस्थियाँ निम्न प्रकार की होती हैं
1. मस्तिष्क कवच (खोपड़ी) और चेहरे की अस्थियाँ
यह रीढ़ की हड्डी के ऊपरी सिरे के साथ जुड़ी होती हैं- मस्तिष्क कवच आठ हड्डियों से मिलकर बना होता है, जिसमें कुछ विशेष ज्ञानेन्द्रियाँ आँख, नाक, कान आदि पायी जाती हैं। खोपड़ी के नीचे का भाग चेहरा होता है, इसमें एक हड्डी होती है, जिसे हम जबड़े की हड्डी या मेडिबल कहते हैं।
2. वक्ष तथा रीढ़ की अस्थियाँ (धड़)- इसमें रीढ़ की 33 हड्डियाँ तथा वक्ष की पसलियों की 12 हड्डियाँ होती हैं। रीढ़ की हड्डियों में हमारे स्नायु संस्थान का बहुत महत्त्वपूर्ण स्पाईनल धागा पाया जाता है। पसलियाँ पीछे की ओर रीढ़ की अस्थियों के साथ मिलती हैं और आगे की ओर केवल दो जोड़ी निचली पसलियों को छोड़कर सभी छाती के बीच को अस्थि स्टर्नम से मिली हुई होती हैं व हृदय तथा फेफड़ों की रक्षा करती हैं।
3. कन्धे तथा हाथ की अस्थियाँ- कन्धे से कोहनी तक एक लम्बी हड्डी होती है, कोहनी में दो हड्डियाँ होती हैं। कलाई में आठ छोटी-छोटी हड्डियाँ, हथेली में पांच हड्डियाँ, प्रत्येक उँगुली में छोटी-छोटी तीन हड्डियाँ और अंगूठे में दो हड्डियाँ होती हैं। पाँचों उँगुलियों की हड्डियों को कोर कहते हैं।
4. कूल्हे तथा पैर की अस्थियाँ- जंघा से कूल्हे तक एक लम्बी हड्डी होती है। पैर में दो हड्डियाँ होती हैं। टखने में सात छोटी-छोटी हड्डियाँ होती हैं। इनमें पैर की हड्डी जुड़ी रहती हैं। पैर के तलवे में 5 सीधी हड्डियाँ और उँगुलियों में 14 हड्डियाँ होती हैं।
अस्थि के जोड़ या सन्धियाँ
जहाँ पर दो या दो से अधिक अस्थियाँ आपस में मिलती है उस स्थान को जोड़ या सन्धि कहते हैं। शरीर में मुख्यतः दो प्रकार की सन्धियाँ पायी जाती हैं
(क) अचल सन्धि-
इस प्रकार के जोड़ों के स्थान पर हड्डियाँ मजबूती के साथ आपस में जुड़ी हुई होती है, वहाँ किसी प्रकार की हलचल नहीं होती। जैसे- खोपड़ी व चेहरे की अस्थियों के जोड़े।
(ख) चल सन्धि-
जिस जोड़ के स्थान पर हलचल होती है उसे चल सन्धि कहा जाता है। चल सन्धि निम्न चार प्रकार की होती हैं और
(1) चूलादार सन्धि-
इस सन्धि को कब्जेदार सन्धि भी कहते हैं। इस
प्रकार की सन्धि में एक अस्थि का भाग दूसरी अस्थि के गड्ढे में इस प्रकार सटा रहता है जो एक ही दिशा में गति करता है। जिस प्रकार किवाड़ या सन्दूक या ढक्कन एक ही दिशा में खुलता है, जिस और उसके कब्जे लगे रहते हैं ठीक उसी प्रकार इस सन्धि का कार्य है। ये सन्धियाँ कोहनी, घुटने व उँगुलियों में पायी जाती हैं।
(2) कीलदार सन्धि-
इस प्रकार की संधि में एक ओर का नुकीला सिरा दूसरी ओर अस्थि के छोर में घुसा रहता है, जिससे ऊपर वाली अस्थि चारों ओर घूम सकती हैं। रीढ़ तथा रीढ़ की प्रथम व द्वितीय कशेरुका में इस प्रकार की सन्धि पायी जाती है। इसी कारण खोपड़ी इधर उधर घुमाई जा सकती है।
(3) फिसलने वाली सन्धि
इन अस्थियों के मध्य में कार्टिलेज की गद्दी होती है। जो परस्पर रगड़ लगने से बचाती है। रीढ़ की कशेरुका के मध्य तथा टखने एवं कलाई में इसी प्रकार की अस्थियाँ पायी जाती हैं।
(4) कन्दुक खल्लिका सन्धि
इस प्रकार की सन्धि में एक लम्बी अस्थि का गोल सिरा दूसरी अस्थि के गोल गड्ढे में फँसा रहता है। कन्धे व कूल्हे में इसी प्रकार की सन्धि पायी जाती है। इस प्रकार के जोड़ के कारण हाथ को चारों ओर घुमाया जा सकता है।
अस्थि भंग का अर्थ
विद्यालय में बालक एवं बालिकाएँ उस अवस्था में खेलकूद में भाग लेतें हैं, जब उनकी अस्थियाँ, पेशियाँ, नसें तथा लिगामेंट अभी बढ़ रहे होते हैं। तनिक सी भी असावधानी होते ही, उन्हें चोट लग सकती है। चोटें केवल खेलों में ही नहीं अपितु घर, सड़क, उद्योग स्थल किसी भी स्थान पर लग सकती हैं। अस्थि टूटने को अस्थि भंग कहते हैं, ऐसी स्थिति में खेल के मैदान पर ही खिलाड़ी को प्राथमिक उपचार देना चाहिए।
अस्थि भंग के लक्षण
1. चोट से प्रभावित भाग में सूजन आ जाती है।
2. चोट से प्रभावित स्थान पर बहुत तीव्र दर्द होता है।
3. उस स्थान में ऐंठन आ जाती है।
अस्थि भंग का प्राथमिक उपचार
अस्थि भंग के उपरांत तुरन्त निम्न प्रकार के प्राथमिक उपचार दिये जा सकते हैं।
1. सम्बन्धित बालक/बालिका को आराम देना चाहिए।
2. टूटी अस्थि को जोड़ने का प्रयास नहीं करना चाहिए।
3. टूटे हुये हिस्से को हिलने नहीं देना चाहिए। 4. अंगों को साधने के लिये तिकोनी पट्टी, गर्म पट्टी स्पंजी लगाकर बाँध देना चाहिए।
5. रोगी को अविलम्ब चिकित्सक के पास सावधानीपूर्वक ले जाना चाहिए।
माँसपेशी संस्थान-
हम जानते हैं कि हमारा संपूर्ण शरीर त्वचा से ढका हुआ है। इस त्वचा के नीचे लाल रंग को माँसपेशियाँ होती है। शरीर के संपूर्ण भाग पर एक जैसी माँसपेशियाँ नहीं होती हैं, कहीं कम होती हैं, कहीं अधिक होती हैं। इनकी बनावट में भी अंतर होता है। माँसपेशियों के मध्य का भाग मोटा तथा दोनों सिरे पतले होते हैं, जो अस्थि कंकाल से जुड़े होते हैं।
हमारे शरीर में अनेक प्रकार की कोशिकाएँ होती हैं। उन कोशिकाओं से माँसपेशियों का निर्माण होता है। मानव की सभी हलचलें इन्हीं के द्वारा सम्पन्न होती हैं। माँसपेशियों में ही शरीर की प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है। हमारे शारीरिक वजन में 43% माँसपेशियाँ होती हैं। जबकि मानव शरीर में लगभग 600 माँसपेशियाँ पायी जाती हैं। जो मिलकर ‘पेशी-तंत्र की भाँति कार्य करती हैं।
मांसपेशियों के प्रकार-
शरीर की रचना तथा कार्य की दृष्टि से माँसपेशियाँ तीन प्रकार की होती हैं
1. ऐच्छिक माँसपेशियाँ
शरीर में लम्बी, छोटी मोटी-पतली तथा चौड़ी लगभग पाँच सौ ऐच्छिक माँसपेशियाँ होती हैं। ये पेशियाँ बन्धन की सहायता से हड्डियों के चारों ओर से जुड़ी हुई होती हैं। इसी कारण इन्हें हड्डियों से जुड़ने वाली माँसपेशियाँ भी कहा जाता है। ये सभी माँसपेशियाँ शरीर के बाहरी भाग में रहती है जो शरीर को सुन्दर तथा सुदृढ़ बनाती है। किसी एक ऐच्छिक माँसपेशी की भीतरी रचना देखने पर सबसे बाहरी भाग में एक पतला लेकिन मजबूत आवरण पाया जाता है।
इस आवरण के अन्दर कई माँसपेशियों की छोटी छोटी लच्छियाँ पायी जाती है। यदि उनमें से एक लच्छी को बाहर निकालकर देखा जाये तो हर लच्छी के अंदर हजारों की संख्या में माँसपेशी के कोष पाये जाते हैं। इन कोषों के ऊपर एक पतला आवरण चढ़ा होता है। ये कोष धागे के समान लम्बे होते हैं। इसलिये इन्हें माँसपेशी कोष न कहते हुये माँसपेशी तन्तु कहा जाता है। ये पेशियाँ थकान महसूस करती हैं, थकान से बचने के लिये इन्हें विश्राम की आवश्यकता भी होती है। इन पेशियों को कंकाल पेशियाँ भी कहते हैं
ऐच्छिक माँसपेशियों के कार्य-
इन माँसपेशियों के कार्य निम्न है
1. ये माँसपेशियाँ शरीर को सुन्दर व सुदृढ़ बनाती हैं।
2. शरीर के आंतरिक अंगों की रक्षा इन्हीं के द्वारा होती है।
3. शरीर के चल जोड़ों में हलचल के कारण शरीर में ऐच्छिक क्रियाएँ होती
4. इन माँसपेशियों के आधार में रक्त वाहनियाँ व नाड़ियाँ क्रिया करती हैं।
अनैच्छिक या अरेखित माँसपेशियों
इन पेशियों के तन्तु लम्बे सँकरे व तर्क रूप में होते हैं। ये एक केन्द्रीय होते हैं। अरेखित पेशियाँ शरीर के आंतरिक अंगों में पाई जाती हैं। इनके कार्यों पर हमारा नियंत्रण नहीं होता। अर्थात् ऐसी माँसपेशियाँ जो मानव की इच्छानुसार रोकी या चलाई न जा सकें, उन्हें अनैच्छिक माँसपेशी कहा जाता है। ये माँसपेशियाँ जीवन पर्यन्त बिना थके हुये कार्य करती हैं। जैसे-श्वसन क्रिया, रक्त संचरण क्रिया, हृदय का धड़कना तथा पाचन क्रिया आदि। इन माँसपेशियों को ‘चिकनी माँसपेशियाँ’ भी कहते हैं।
हृद पेशियाँ-
ये हृदय की भित्ति में पायी जाती हैं। इनकी संरचना रेखित पेशी तन्तुओं के समान तथा कार्य पेशी तन्तुओं के समान होते हैं। हद पेशी तन्तु छोटे मोटे, बेलनाकार, शाखासम तथा केन्द्रकीय होते हैं।
हृद पेशी तन्तु जीवन –
पर्यन्त बिना रुके, बिना थके, एक लय से सिकुड़ते-फैलते रहते हैं। इसके फलस्वरूप शरीर में निरंतर रक्त प्रवाहित होता. रहता है।
माँसपेशियों के कार्य तथा महत्व Work of Ligaments and Importance
1. ऐच्छिक माँसपेशियों की सहायता से ही मनुष्य इच्छानुसार कार्य कर सकता है। जैसे-हँसना, बोलना, खाना, चलना आदि।
2. अनैच्छिक पेशियों के द्वारा जीवन हेतु आवश्यक क्रियाएँ जैसे श्वसन, पोषण, उत्सर्जन आदि
3. ऐच्छिक पेशियों को आराम देने पर मनुष्य आराम महसूस करता है। सम्पन्न होती हैं
4. मांसपेशियों के कारण ही हम जीवन का आनन्द उठाने में तथा देखने में सक्षम होते हैं। जैसे- नेत्र द्वारा वस्तु की स्थिति, दूरी तथा उसके आकार-प्रकार का ज्ञान होता है।
5. माँसपेशियों के कारण ही शरीर सुन्दर व सुडौल दिखता है।
6. माँसपेशियों के कारण हृदय शरीर के विभिन्न भागों से रक्त को एकत्र करके उसका वितरण करता है