Natural Environment
इस लेख में हम पृथ्वी की भूमि के बारे में पढ़ेंगे जैसे- चट्टानें, खनिज, जीवाश्म, ज्वालामुखी, मैदान, पठार इत्यादि।
पृथ्वी का प्राकृतिक वातावरण चार क्षेत्रों में विभाजित हैः
स्थल मण्डल, वायुमंडल, जलीय मण्डल और जैव मण्डल।
1. स्थल मण्डल भूमि से सम्बंधित है।
2. वायुमंडल हवा से सम्बंधित है।
3. जलीय मण्डल जल से सम्बंधित है।
4. जैव मण्डल जीवन पौधों व पशुओं आदि जीव धारियों से सम्बंधित है।
परिस्थितिकी संतुलन प्राकृतिक अस्तित्व की आदर्श स्थितियों पर निर्भर है जहाँ प्रत्येक क्षेत्र दूसरे की मदद करता है। परिस्थितिकी संतुलन में कोई भी विक्षोभ सभी के जीवन को संकट में डाल सकता है। इस विश्व में कुछ भी गतिहीन नहीं है। यह समयानुसार बदलता है। लगभग 4500 मिलियन वर्ष पूर्व पृथ्वी बनी। इसके जन्म से ही यह कई परिवर्तनों से गुजर रही है।
भूमि (Land)Natural En routevironment
पृथ्वी की सतह का 29 प्रतिशत भाग पानी से ढका हुआ है। प्रशान्त महासागर ही 60 मिलियन किमी का क्षेत्र घेरे हुए है। यह सभी उपमहाद्वीपों और द्वीपों को मिलाकर भी उनसे बड़ा है। जल और भूमि का वितरण जलवायु के वितरण और विवर्तनिक गतिविधियों से प्रभावित हो सकता है। भूमि व जल के असमान वितरण का विश्व की जलवायु संरचना पर मुख्य प्रभाव पड़ता है। महासागर वर्षा के लिए नमी का मुख्य स्रोत हैं। वे हमारी ऊष्मा के भी भंडार हैं।
तटीय रेखाओं द्वारा निर्धारित महासागरों और प्रायद्वीपों की सीमाएँ विश्व को विभाजित करने का सुगम प्राकृतिक मार्ग सुझाती हैं। यह पृथ्वी का अंतरिक्ष से दिखने वाला चेहरा है। यह हमारे वातावरण को व्यवस्थित करने का एक अर्थपूर्ण आधार देता है।
भूमि की असमानता (The Inequality of Land)
हमारी पृथ्वी की सतह पर कई प्रकार के भूमिरूप हैं। यहाँ ऊँचे पर्वत और गहरी घाटियाँ हैं, चीड़े मैदान व पठार हैं। पठार ऊँचा प्रदेश होता है परंतु उसका शिखर समतल और ढाल कम ढलवाँ होते हैं। पृथ्वी पर सबसे ऊँची चोटी हिमालय की माउंट एवरेस्ट है जो समुद्र सतह से 8848 मीटर ऊँची है। सबसे निम्न बिंदु प्रशान्त महासागर का मैरियाना ट्रैंच है जो समुद्र सतह से 11340 मीटर गहरा है। भूमिरूपों की इस विविधता ने लोगों का पृथ्वी की सतह पर प्रसार और गतिविधियों को प्रभावित किया है।
पृथ्वी की आंतरिक संरचना (Interior of the Earth)
पृथ्वी की आंतरिक संरचना के विषय में हमारा अधिकांश ज्ञान अप्रत्यक्ष स्रोतों से है। इसमें मुख्य स्रोत हैं भूकंप की लहरें जो भूकंप द्वारा उत्पन्न होती हैं। पृथ्वी की परत के धक्कों और कंपनों को ही भूकंप कहते हैं। वे भूकंप के केंद्र से पृथ्वी की सतह की ओर भिन्न दिशाओं व भिन्न गति से चलते हैं। उनकी गति गुजरने वाले पदार्थ की प्रकृति पर निर्भर करती है। भूकंप की लहरें मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं प्राथमिक और माध्यमिक।” इन तरंगों के अध्ययन से हम पृथ्वी की आंतरिक संरचना के विषय में जानने में समर्थ होते हैं। पृथ्वी तीन परतों की बनी है।
पपड़ी (Crust)
यह एक पतली, ठोस परत है जो इसकी सबसे ऊपरी परत है। इसकी मोटाई एक स्थान से दूसरे स्थान तक भिन्न होती है। जो भाग सागर तल का निर्माण करता है 4 से 7 किमी मोटा होता है। प्रायद्वीपों में इसका औसत 35 किमी है। पपड़ी कुछ पर्वतों के नीचे 70 किमी तक मोटी होती है। मृदा पपड़ी की सबसे ऊपरी परत है।
प्रावरण (Mantle)
पपड़ी के नीचे बहुत मोटी परत को प्रावरण कहते हैं। यह गहराई में 2900 किमी तक होती है। सम्पूर्ण प्रावरण एकसमान नहीं होता। इसका ऊपरी भाग लगभग 100 किमी तक होता है। 100 के नीचे का भाग निम्न प्रावरण है।
केंद्र (Core)
अंतस्थ भाग को केंद्र कहते हैं। इसकी त्रिज्या 3470 किमी है जो दो भागों में विभाजित है-वाय और आंतरिक लोहा और निकिल इस परत के मुख्य घटक हैं जिसके कारण इसे नाइफ कहते हैं। जब लोग पपड़ी को खनिज या तेल के लिए खोदते हैं, वे चट्टानों को भीतरी सतह से कहीं अधिक गर्म पाते हैं।
लावा (Lava)
कभी-कभी पृथ्वी के भीतर से गर्म पदार्थ दरारों से बाहर आ जाते हैं, जैसे ज्वालामुखी से लावा जब पिघले पदार्थ समुद्र तल से निकलते हैं तो यह नया समुद्र तल बना देते हैं। इस पिधले पदार्थ को मैग्मा कहते हैं। भूमि की सतह पर लावा के जमाव पर्वत भी बना सकते हैं। जापान का फूजीयामा पर्वत इसका एक उदाहरण है।
प्लेटें (Plates)
समुद्र तल का विस्तार पपड़ी को कई बड़े भागों में तोड़ देता है। इन्हें गतिशील प्लेटें कहते हैं। पृथ्वी की पपड़ी सात बहुत बड़ी और कई छोटी प्लेटों से मिलकर बनी है।
भूवैज्ञानिकों के अनुसार हिमालय तथा एण्डीज पर्वत प्लेटों के टकराने के कारण बने हैं। इस टकराव ने एक प्लेट को दूसरी पर चढ़ा दिया, प्लेटों के बीच के पदार्थ ऊपर आ गए और पर्वत बन गए।
चट्टानें व खनिज (Rocks and Minerals)
पृथ्वी चट्टानों और खनिजों से मिलकर बनी है। पृथ्वी की पपड़ी बनाने वाली ठोस चट्टानें हैं। पृथ्वी की पपड़ी का कोई भी कठोर भाग चट्टान कहा जा सकता है। एक चट्टान को खनिजों का समूह कहा जा सकता है। चट्टानें स्थल मण्डल का अधिकांश ठोस पदार्थ हैं। चट्टानें कठोर या नर्म हो सकती हैं। अधिकांश चट्टानें विभिन्न खनिजों का विभिन्न अनुपात में मिश्रण हैं।
खनिज एक प्राकृतिक पदार्थ है जिसकी एक निश्चित रासायनिक संरचना और भौतिक गुणधर्मिता होती है। एक चट्टान जिसमें एक ही खनिज का बड़ा भाग हो तथा उसे कम खर्च में निकाला जा सके, उस खनिज को अयस्क कहलाता हैं। मैग्नेटाइट लौहे का एक अयस्क है।
चट्टानें (Rocks)
चट्टानों के प्रकार (Types of Rocks)
पृथ्वी की पपड़ी विभिन्न प्रकार की चट्टानों से मिलकर बनी है जो एक दूसरे से संरचना, संयोजन, रंग आदि में भिन्न हैं। उनके निर्माण के आधार पर चट्टानों को तीन भागों में बाँटा जा सकता है:
1. आग्नेय चट्टानें 2. अवसाद चट्टानें 3. रूपांतरित चट्टानें इन सभी को उनके रासायनिक और भौतिक गुणों के आधार पर अनेक भागों में विभाजित किया जा सकता है।
1. आग्नेय चट्टानें (Igneous Rocks)
आग्नेय चट्टानें पृथ्वी के भीतर से निकले पिघले हुए पदार्थों का ठोस रूप हैं। पृथ्वी के भीतर चट्टानें पिघली अवस्था में होती हैं। इस पिघले पदार्थ को मैग्मा (द्रवित चट्टान) कहते हैं। यह ज्वालामुखीय गतिविधि के कारण पिघले या ठोस रूप में सतह पर आ जाता है। आग्नेय चट्टानें ज्वालामुखी पदार्थ के जमाव और ठोसीकरण हैं। आग्नेय चट्टानों की प्रकृति आग्नेय होती है, जिन्हें प्राथमिक चट्टानें कहते हैं क्योंकि वे पाई जाने वाली प्रथम चट्टानें हैं। वे सामान्यतः कठोर होती हैं जिन पर कोई परत नहीं होती और जीवाश्म भी नहीं होते। इसके अतिरिक्त स्फटिक होने के कारण इनमें से पानी भी नहीं गुज़र सकता।
उपयोग: चूंकि ये चट्टानें ठोस होती हैं और जल्दी क्षरित नहीं होतीं, इनसे अच्छे निर्माण पदार्थ बनाए जाते हैं। ग्रेनाइट, बासाल्ट, गैब्रो, डोलेराइट, फेल्डस्पार, प्यूमाइस, ऑब्सीडियन और स्कोरिया इन चट्टानों के कुछ उदाहरण हैं। अधिकांश धातुई खनिजों के अयस्क आग्नेय चट्टानों से जुड़े हैं।
2. अवसाद चट्टानें (Sedimentary Rocks)
ये झीलों, नदियों व समुद्रों के पानी में एकत्रित तलछटों के जमने से बनती हैं। ये अवसाद झीलों, नदियों व समुद्रों के क्षरण के एजेंटों के माध्यम से चट्टानों के छीलन से मिलते हैं। क्षरण के एजेंट अपघटित चट्टानों के टुकड़ों को पानी के स्रोतों में ले जाकर उन्हें जमा देते हैं। ऐसे जमे पदार्थों को ही अवसाद या तलछट कहते हैं। तलछटों में रेत, छोटे पत्थर, सिल्ट और मृदा होती है। लम्बे समय में इनका जमाव मोटा हो जाता है और मज़बूत, कठोर चट्टानों का रूप ले लेता है।
तलछटों में मज़बूती ऊपर के पदार्थों के दबाव चूने जैसे मज़बूती देने वाले पदार्थों के कारण आती है। इन्हें माध्यमिक चट्टानें भी कहते हैं क्योंकि ये अन्य चट्टानों से निकलती हैं।
जीवाश्म (Fossils)
अवसाद चट्टानें जिनमें तलछटों की परतें होती हैं सामान्यतः नर्म होती हैं। ये अधिकांश छिद्रित और जल गुज़रने योग्य होती हैं। तलछटों की परतों में पीथों और पशुओं के अवशेष संरक्षित हो सकते हैं। इन अवशेषों को जीवाश्म कहते हैं। अधिकांश जीवाश्म अवसाद चट्टानों में ही मिलते हैं। ये इन अवसाद चट्टानों की आयु निर्धारित करने में मदद करते हैं।
3. रूपांतरित चट्टानें (Metamorphic Rocks)
ये रूपांतरण की प्रक्रिया के कारण बनती हैं। रूपांतरण का अर्थ है बदलना। पहले की चट्टानों में रासायनिक और भौतिक दोनों ही परिवर्तन हो सकते हैं। ये तब होता है जब चट्टानें उच्च दबाव या ताप झेलती हैं। एक चट्टान में मिलने वाले प्राकृतिक खनिज बदल जाते हैं और नए खनिज बन जाते हैं। चट्टानों के जोड़ों पर दबाव पड़ता है और स्फुटन होता है। इस प्रकार से बनी चट्टानें मूल चट्टान से अत्यंत कठोर और भारी होती हैं।
रूपांतरण की प्रक्रिया में बहुत लंबा समय लग सकता है। कई अवसादी और आग्नेय चट्टानें नयी चट्टानों को जन्म देने के लिए रूपांतरित हो जाती हैं। उदाहरण के लिए बलुआ पत्चर क्वार्टज़ाइट में, चूनापत्थर मार्बल में, मृदा और स्लेटी पत्थर स्लेट में, ग्रेनाइट ग्नेस में, बासाल्ट स्क्स्टि में और कोयला ग्रेफाइट में बदल सकता है।
खनिज (Minerals)
विशेष रासायनिक पदार्थ जो चट्टानें बनाते हैं, खनिज कहलाते हैं। क्वार्टज एक अत्यंत सामान्य खनिज है जो पृथ्वी की सतह पर मिलता है। एक खनिज एक निश्चित रासायनिक संघटन रखता है। उनमें से अधिकांश प्राकृतिक रूप में मिलने वाले अकार्बनिक पदार्थ हैं। वे एक ही तत्व के अणुओं या एक से अधिक तत्वों के अणुओं से एक निश्चित अनुपात में मिलकर बने हो सकते हैं।
एक ही तत्व के अणुओं से बने खनिजों में सल्फर, सोना, हीरा और ग्रेफाइट आते हैं। सोना और हीरा आभूषणों में और ग्रेफाइट पेंसिलों के सिक्के बनाने के काम आता है। एक से अधिक तत्वों के अणुओं से बने खनिज हैं : क्वार्टज (SiO.), हेमेटाइट (Fc, O,), गेलेना (PbS), और कैल्साइट (CaCO),) पृथ्वी की पपड़ी में 2000 से अधिक खनिज उपस्थित हैं।
खनिजों का निर्माण (Formation of Minerals)
समान तत्वों से विभिन्न खनिजों का निर्माण पृथ्वी के गर्भ में विभिन्न स्थितियाँ और भिन्न क्षेत्रों में हुआ दिखाता है। उदाहरण के लिए पृथ्वी के ऊपरी भाग में उपस्थित कार्बन अणु एक नर्म खनिज ग्रेफाइट बनाने के लिए मिल जाते हैं। पृथ्वी के भीतर जहाँ ग्रेफाइट बनता है, ताप और दबाव अधिक नहीं होते। वह कार्बन अणु पृथ्वी की गहराई में उपस्थित होने पर कठोर प्राकृतिक पदार्थ हीरा बनाने के लिए मज़बूती से संयोजित होते हैं। इससे ज्ञात होता है कि पृथ्वी की गहराई में अत्यधिक ताप व दाब है।
सिलिकेट (Silicates)
सिलिकान और आक्सीजन पृथ्वी की पपड़ी में अत्यधिक मिलने वाले दो तत्व हैं। वे यौगिक जिनमें एक धातु, सिलिकान और आक्सीजन मिल जाते हैं. सिलिकेट कहलाते हैं। सिलिकेट अत्यंत सामान्य चटूटान बनाने वाले खनिज हैं। उदाहरण के लिये चट्टानें; जैसे ग्रेनाइट, बलुआ पत्थर और स्लेटी पत्थर सभी सिलिकेट से बने हैं। वस्तुतः ग्रेनाइट, बलुआ पत्थर और स्लेटी पत्थर सभी को सिलिकेट चट्टानें ही कहा जाता है।
पृथ्वी की हलचलें (Earth Movements)
प्लेट हलचल तथा विवर्तनिक गतिविधियाँ : स्थल मण्डल कठोर पट्टियों से बना है जो अपने स्थान से खिसकती रहती है। उनके बीच की प्रतिक्रिया और उनकी गति को ही प्लेट विवर्तनिक कहते हैं। चूंकि सभी विवर्तनिक गतिविधियाँ जैसे भूकंप, ज्वालामुखी, मुड़ाव, त्रुटियाँ आदि प्लेटों के किनारों पर ही होती हैं इसलिए प्लेटों की सीमाएँ अधिक महत्त्वपूर्ण हैं पृथ्वी की हलचलें प्लेटों की गति के कारण ही होती हैं।
विभिन्न भूमिरूप पृथ्वी की हलचलों के कारण ही बनते हैं। पृथ्वी की हलचल बहुत तेज़ या धीमी हो सकती है। धीमी हलचल को लम्बी अवधि की हलचल कहते हैं क्योंकि इसमें लम्बा समय लगता है। वे शक्तियाँ जो भूमि की संरचना में परिवर्तन लाती हैं विवर्तनिक शक्तियाँ कहलाती हैं। पृथ्वी पर प्रायद्वीप और महासागर प्रायद्वीप बनाने वाली हलचलों के कारण ही विभिन्न आकारों के हैं। इनके कारण ही भूकंप आते हैं और ज्वालामुखी फूटते हैं। भूकंप को एक उपकरण से मापा जाता है जिसे सीमोग्राफ कहते हैं।
भूकंप (Earthquakes)
भूकंप पृथ्वी के एक भाग के यकायक कंपन करने को कहते हैं। कभी-कभी कंपन इतना दुर्बल होता है कि लोग इसका आभास ही नहीं करते। कभी-कभी वे इतने उग्र होते हैं कि पृथ्वी की पपड़ी में लम्बी दरारें पड़ जाती हैं, इमारतें गिर जाती हैं और सैकड़ों हज़ारों लोग मर जाते हैं। पृथ्वी की पपड़ी कई मोटी प्लेटों से मिलकर बनती है जो लगातार गति में रहती हैं जिन्हें विवर्तनिक गतियाँ कहते हैं।
कभी कभी ये प्लेटें एक दूसरे पर चढ़ जाती हैं तो कभी एक दूसरे से टकरा जाती हैं। इनसे पृथ्वी के भीतर व्यवधान होते हैं और उसकी सतह हिलने लगती है। कुछ भूकंप प्रकृति से ज्वालामुखीय होते हैं। जब कोई पिघली चट्टान ज्वालामुखी द्वारा बाहर फेंकी जाती है, इस उगलाव से भूकंप आ जाता है। भूकंप की तीव्रता रिक्टर पैमाने पर 0 से 9 तक मापी जाती है।
ज्वालामुखी (Volcanoes)
ज्वालामुखी पृथ्वी की पपड़ी में दरार होती है। इसके द्वारा पृथ्वी के भीतर की पिघली चट्टान या लावा और गैसें तेजी से पृथ्वी की सतह की और आती है।
ज्वालामुखियों के प्रकार (Kinds of Volcanoes)
1. सक्रिय ज्वालामुखी (Active Volcanoes)
जो ज्वालामुखी समय-समय पर लावा उगलते रहते हैं, सक्रिय ज्वालामुखी कहलाते हैं। संसार में कुल मिलाकर लगभग 500 सक्रिय ज्वालामुखी हैं।
2. निष्क्रिय ज्वालामुखी (Dormant Volcanoes)
ये ज्वालामुखी जो अतीत में फूटे थे परंतु अब लम्बे समय से निष्क्रिय हैं। इन्हें निष्क्रिय ज्वालामुखी कहते हैं। वे फिर भविष्य में फटेंगे भारत अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के एक निर्जन द्वीप पर स्थित ज्वालामुखी, हाल ही में सक्रिय होने से पूर्व, सुप्त था। वेस्टइंडीज, फिलिपींस और जापान में कुछ निष्क्रिय ज्वालामुखी हैं।
3. विलुप्त ज्वालामुखी (Extinct Volcanoes)
ये वे ज्वालामुखी हैं जो लम्बे समय पहले सक्रिय थे। लेकिन अब वे इतने लम्बे समय से निष्क्रिय हैं कि भविष्य में उनके फूटने की सम्भावना नहीं है। ईस्ट अफ्रीका का माउंट किलिमंजारों ऐसे ही ज्वालामुखी का एक उदाहरण है।
ज्वालामुखियों का वैश्विक वितरण (World Distribution of Volcanoes)
पृथ्वी की पपड़ी में दरार होती है जिसके द्वारा पृथ्वी के भीतर की पिघली चट्टान या लावा और गैसें तेजी से पृथ्वी की सतह की ओर आती हैं जिसे ज्वालामुखी कहते हैं। अधिकांश सक्रिय ज्वालामुखी पपड़ी के स्थायित्व के दो मुख्य क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
1. परिव्यापक प्रशान्त (The Circum Pacific Belt)
सभी सक्रिय ज्वालामुखियों का लगभग 80 प्रतिशत इसी पट्टी में है जो प्रशान्त महासागर के पार्श्व को घेरे हैं। यहाँ पर बड़ी संख्या में ज्यालामुखियों के होने से इसे ‘आग का प्रशान्त घेरा’ भी कहा जाता है। इनमें मुख्य सक्रिय ज्वालामुखी हैं दक्षिणी अमेरिका के एंडीज़ पर्वत, उत्तरी अमेरिका के रॉकी पर्वत, एल्यूशियन द्वीप और एशिया का द्वीपीय क्षेत्र कुरील और जापानी द्वीपों, ताइवान, फिलिपींस और इण्डोनेशियन द्वीपों आदि न्यूजीलैण्ड और हवाई द्वीपों में भी बड़ी संख्या में ज्वालामुखी हैं।
2. भूमध्यसागरीय पट्टी (The Mediterranean Belt)
इसे ‘मध्य विश्व पर्वतीय पट्टी’ भी कहा जाता है, यह भूमध्यसागरीय समुद्र से लेकर हिमालय तक फैली है। इसमें अल्पाइन तथा हिमालयी पर्वत तंत्र सम्मिलित हैं। हिमालय के पूर्वी क्षेत्र से यह दक्षिण की ओर मुड़ती है और अंडमान, निकाबार तक फैलती है। यह इण्डोनेशिया प्रशान्त पट्टी में जाकर मिलती है। इस पट्टी के युवा फोल्ड पर्वत हैं-अल्पाइन व हिमालय।
मुख्य भुमि रूप (Major Land Forms)
पर्वत, पठार और मैदान मुख्य भूमि रूप हैं।
1. पर्वत (Mountains)
पर्वत भूमि की सतह से लगभग सौ मीटर उठी हुई आश्चर्यजनक आकृति हैं 1600 मीटर से ऊपर होने पर उन्हें पर्वत और नीचे होने पर पहाड़ी कहा जाता है। यह अपने आसपास के क्षेत्र से अत्यंत ऊँचे हो जाते हैं। पर्वतों में तीव्र ढाल, शिखर और तीव्र शृंखलाएँ होती हैं।
पर्वतों के प्रकार (Types of Mountains)
(i) युवा व बूढ़े पर्वत (Young and Old Mountains) युवा पर्वतों के लक्षण तीखे होते है। बूढ़ों के लक्षण गोलाकार होते हैं। हिमालय तुलनात्मक रूप से युवा पर्वत है। अरावली बूढ़ा पर्वत है।
(ii) फोल्ड हुए पर्वत (Fold Mountains) : ये पर्वत विपरीत दिशाओं से दबाव डालने वाली शक्तियों के कारण बनते हैं। इनमें मोड़ या सामानांतर
शृंखलाएँ होती है। इनका कारण पृथ्वी की पपड़ी का मुड़ना और ऊपर उठना होता है।
(iii) अवशिष्ट पर्वत (Residual Mountains) : तमिलनाडु की नीलगिरि पर्वत शृंखला काघिसाव आसपास की भूमि के नदियों, हवाओं और अन्य वाह्रय कारणों से हुआ है। बिहार-बंगाल की राजमहल पहाड़ियों भी अवशिष्ट पर्वत का ही उदाहरण है। पर्वत ज्वालामुखी पदार्थों के
एकत्रित होने से भी बनते हैं।
2. पठार (Plateaus)
इटारों की सतह आस-पास की समतल भूमि से उठी हुई होती है। ये पपड़ी के किसी समय पर उठने से बनते हैं। पश्चिमी आस्ट्रेलिया और दक्षिणी अफ्रीका के पठारों ने पृथ्वी की पपड़ी के बनने के समय ही मूल भूमि रूप प्राप्त किया। कुछ पठार नदियों द्वारा विभाजित हैं। कुछ अन्य जैसे तिब्बत, चारों ओर से पर्वतों से घिरे हैं। भारत का दक्षिण प्रायद्वीपीय पठार विश्व का सबसे प्राचीन पठार है।
3. मैदान (Plains)
मैदान भूमि का एक विस्तृत क्षेत्र है जो या तो समतल या कुछ ऊबड़-खाबड़ होता है। मैदानों को निम्न भूमि भी कहा जाता है।
(i) जलोढ़ मैदान (Alluvial Plains): ये उन तलछटों से बने हैं जो नदियों द्वारा नीचे लाए गए हैं।
भारत का गंगा मैदान ऐसे ही मैदानों का एक उदाहरण है।
(ii) बहाव मैदान (Drift Plains): ये हिमनदीय जमाव से बनते हैं; जैसे कनाडा।
(iii) जमावी मैदान (Depositional Plains): बहती हवाएँ जमावी मैदान बनाती हैं; जैसे उत्तर पश्चिमी चीन। ये मैदान हवा द्वारा बहाई गयी रेत के कारण बने हैं।
(iv) शरण मैदान (Plain Formed in Erosion): ये पठारों और पर्वतों के क्षरण से बने हैं।
कैनेडियन शील्ड ऐसे ही मैदानों का उदाहरण है।
(v) संरचनात्मक मैदान (Structural Plains): जहाँ पर एक समुद्र तल एक उठे हुए प्रायद्वीप को घेरता है संरचनात्मक मैदान बन जाते हैं। अमेरिका में दक्षिणी पूर्वी मैदान इसी प्रकार से बने हैं।
मृदा का निर्माण (Formation of Soil)
यदि ऋतुकृत चट्टान के कण लंबे समय तक नग्न रहे तो रासायनिक तथा कार्बनिक परिवर्तन होते हैं। ये परिवर्तन चट्टान के छोटे टुकड़ों को मृदा में बदल देते हैं। मृदाएँ पौधों के उगने के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं। मृदाओं का निर्माण उस स्थान की जलवायु, चट्टान के प्रकारों, हरियाली और भूमि के ढाल पर निर्भर करता है।