
viral fever वायरल फीवर viral fever symptom
(वायरल फीवर) को सामान्य बोलचाल में मौसमी बुखार भी कहते हैं। यह बुखार एक प्रकार के बहुत ही सूक्ष्म जीव वायरस (Virus) के कारण होता है।
- इसमें रोगी को अचानक तेज बुखार आता है। इसके अतिरिक्त रोगी प्रायः भयंकर सिर दर्द, हाथ-पैरों तथा बदन में दर्द होता है।
- वायरल फीवर होने के कारण(due to viral fever)
- यह बुखार एक प्रकार के बहुत ही सूक्ष्म जीव वायरस के कारण होता है जो रोगी के श्वसन तंत्र के ऊपरी भाग के स्राव में मौजूद होता है। जब रोगी खाँसता तथा छींकता है
- तो यह वायरस वायु द्वारा पास में मौजूद व्यक्तियों के श्वसन तंत्र की कोशिकाओं में पहुँच कर अपनी संख्या में बढ़ोत्तरी करके रोगी में विभिन्न लक्षण पैदा कर देते हैं।
- सिनेमा घरों में स्कूलों में, हॉस्पीटल में, कैंप में बस या ट्रेन में तथा अन्य भीड़-भाड़ वाले स्थानों में जाने या रहने वाले व्यक्ति आसानी से इस रोग के शिकार हो जाते हैं।
- वायरल फीवर के लक्षण(Viral fever symptoms)
- रोगी को अचानक तेज बुखार (105-106 डि. फा.) चढ़ता है। इसके साथ ही भयंकर सिर दर्द, हाथ-पैरों में तथा बदन में दर्द, गले में खरास, जुकाम, खाँसी, आँखों में जलन होना, उल्टि होना और अधिक आदि लक्षण होते हैं।
- किसी-किसी के पेट में दर्द भी होता है। बुखार उत्तर जाने के बाद भी रोगी को हफ्तों तक कमजोरी रहती है।
- ध्यान रहे यदि बुखार 4-5 दिन में न उतरे तो बुखार किसी अन्य कारण से भी हो सकता है।
- वायरल फीवर की पहचान(viral fever diagnosis)
viral fever
- उपरोक्त लक्षणों के आधार पर रोग के निदान में कोई कठिनाई नहीं होती है। सबसे अहम् बात है कि इस रोग में एकाएक तीव्र ज्वर के साथ सारे शरीर में उग्र स्वरूप की टूटन (पीड़ा) और सर्दी जुकाम युक्त लक्षण देखने को मिलते है।
- वायरल फीवर का परिणाम(Viral fever results)
- यह रोग कभी-कभी जटिल होकर गम्भीर रूप धारण कर लेता है। इस रोग की मुख्य जटिलता न्यूमोनिया है जिसमें रोगी के फेफड़ों में सूजन आ जाती है। ऐसे में रोगी को खाँसी, छाती में दर्द, और साँस में तकलीफ होती है।
- कुछ रोगियों की जीभ और नाखून नीले पड़ जाते हैं जो एक गम्भीर स्थिति है। इसके अतिरिक्त इस रोग में मायोकारडाइटिस, ‘पेरीकारडाइटिस’, ‘मस्तिष्क ज्वर, गैस्ट्राइ टिस आदि उपद्रव हो सकते
- वायरल फीवर से बचाव (protection against viral fever)
- जहाँ पर जब रोग व्यापक रूप से फैला हो. तो जहाँ तक सम्भव हो तो भीड़ में जाने से बचें। अब इस रोग के रोग निरोधक टीके भी. उपलब्ध हैं।
- क्या खाएँ (What should we eat)
- रोगी को हल्का सुपाच्य, स्वच्छ और ताजा भोजन दें। फलों के अशुद्ध रस से बचें। रोगी को दूध, पतली खिचड़ी, पतला दलिया, मूँग की दाल, परवल आदि दें।
- आधुनिक चिकित्सा(modern medicine)
- वायरल डिजीज होने के कारण इस रोग की कई विशिष्ट औषधि हैं। बुखार, सिर दर्द एवं बदन दर्द जैसे लक्षणों के लिये पैरासिटामोल’ ‘क्रोसिन’, ‘मेटासिन’, ‘कालपोल जैसी दवायें उपयोगी सस्ती और अपेक्षाकृत सुरक्षित मानी जाती हैं पर औषधि चिकित्सक की देखरेख में लेनी चाहिये। कभी-कभी इनके विपरीत प्रभाव भी होते देखे जाते हैं।
- वायरल फीवर में एस्प्रीन भी लाभकर पायी गई है। पर यह औषधि दमा, लिवर एवं पेप्टिक अल्सर के रोगियों तथा बच्चों को नहीं देनी चाहिये। यह दवा खाली पेट कभी न लें।
- शराब पीने वाले भी इस औषधि को न लें, उनमें आमाशय से रक्तस्राव हो सकता है। वायरल फीवर में एम्पीसिलीन, टेट्रासाइक्लीन सेप्ट्रान, सिपलिन डी. एस. सिप्रोफ्लोक्सासिन, जेण्टामाइसीन तथा क्लोरम्फेनीकॉल जैसी एण्टीबायोटिक औषधियाँ भूलकर भी न दें।
- इन औषधियों का इस रोग में कोई अच्छा रोल नहीं है। लेकिन जब वायरल फीवर के रोगी में जीवाणु भी आक्रमण करके जीवाणु जनित न्यूमोनिया उत्पन्न कर देते है।
- ऐसी स्थिति में जीवाणुओं के विरुद्ध कारगर एम्पीसिलीन’, ‘सिप्रोफ्लोक्सासिन देना जरूरी हो जाता है। फिर भी बलगम की जाँच कराकर तदनुसार उचित एण्टीबायोटिक लें।
खाँसी से राहत दिलाने के लिये कोडीन युक्त कफ सीरप (मिट्स कोडीन कम्पाउन्ड) ठीक रहते हैं पर अधिक मात्रा में न लें। कोडीन से कब्ज उत्पन्न हो जाती है।
यदि वायरल फीवर के रोगी को उल्टियाँ भी हो रही हों तो रोगी को डोमेपरीडोन. पोलीक्रोल, ‘डायजीन’ का सेवन लाभकर होता है। शेष रोगी को हर हालत में विश्राम का निर्देश दे