yoga for beginners

योगा आसन yoga posture
योगा आसन yoga postyoga

yoga for beginners

योग का तृतीय अंग है ‘आसन’। शरीर को विभिन्न स्थितियों में रखते हुए किसी एक स्थिति में सुखपूर्वक स्थिर रख सकें उसे ‘आसन’ कहा जाता है। विभिन्न योगियों ने अनेक प्रकार के आसनों व प्राणायामों को स्वयं के ऊपर प्रयोग करने के उपरांत निष्कर्ष निकाला है जिनको करने से शरीर, मन एवं इन्द्रियाँ पर संयम आता है, उसे ‘आसन’ कहते हैं। योग का एक अंग होने के कारण आसनों को ‘योगासन’ कहते हैं। योगासनों के द्वारा हम अपने रोगों पर नियंत्रण पाकर आरोग्य को प्राप्त कर सकते हैं तथा स्वस्थ रह सकते हैं।

योग के विधि एवं नियम

Method and Rules of yoga

योगासन करने का लाभ तभी मिलेगा जब उनको नियमानुसार एवं विधिपूर्वक किया जाय। अतः योगासन करने से पूर्व निम्नलिखित निर्देशों का पालन करना चाहिए।

1. प्रातः सूर्योदय से पूर्व जागकर शौच आदि से निवृत्त होकर आसन करने चाहिए।

2. आसन स्नान करने के बाद किए जायें तो अच्छा रहता है। स्नान करने से पूर्व भी आसन किए जा सकते हैं। परन्तु आसन करने के कम से कम आधा घंटे बाद स्नान करना चाहिए।

3. आसन खाली पेट ही करने चाहिए। केवल वज्र-आसन ही भोजन करने के बाद कर सकते हैं।

4. आसन समतल भूमि पर वस्त्रादि बिछाकर ही करने चाहिए। बिना बिछायत की भूमि पर आसन करने से भूमि की चुम्बकीय शक्ति प्रतिकूल प्रभाव डालती है।

5. मौसम के अनुसार कम से कम व ढीले वस्त्र पहनकर आसन करने चाहिए।

6. आसन खुले स्थान पर खुले आसमान के नीचे करने चाहिए।

7. आसन करते समय शरीर पर सीधी तेज हवा नहीं लगनी चाहिए।

8. आसन करते समय बातचीत नहीं करनी चाहिए। नाक से श्वाँस लेनी चाहिए और नाक से ही श्वाँस निकालनी चाहिए।

9. अस्वस्थ होने की दशा में आसन या प्राणायाम नहीं करना चाहिए। गर्भवती महिलाएँ गर्भावस्था के तीन महीने तक आसन कर सकती है। तीन महीने के बाद आसन नहीं करने चाहिए।

10. आसन आसानी से करने चाहिए अर्थात आसन करते समय शरीर के किसी अंग को झटका नहीं देना चाहिए।

11. आसन करने का क्रम इस प्रकार होना चाहिए कि पहला आसन करने के बाद विपरीत क्रिया वाला आसन हो।

जैसे-पश्चिमोत्तासन आसन के बाद उष्ट्रासन, सर्वांगासन के बाद मत्स्यासन

12. सभी प्रमुख आसन के पूर्व व अंत में शवासन करना चाहिए।

खड़े होकर किये जाने वाले आसन

 Standing to be the Posture

त्रिकोणासन-

त्रिकोणासन
त्रिकोणासन

इस आसन में हाथ और पैर के मध्य जमीन पर त्रिकोण की स्थिति बनती है। इसलिए इसे

त्रिकोणासन कहते हैं।

विधि-

उछलकर अथवा बिना उछले दोनों पैरों को खोलकर लगभग एक मीटर का अंतर ले। दोनों हाथ बाजू में हथेलियाँ जमीन की ओर रहें। दाँये पैर के पंजे को दाँयी ओर समकोण पर घुमायें। बाँये पैर के पंजें को भी दाँयी और अर्थात सामने की ओर सीधा करें। अब शरीर को दाँयी ओर झुकाते हुए दाँये हाथ को दाँये पैर के पंजे के पास जमीन पर रखें। बाँया हाथ ऊपर की ओर उठायें। दोनों हाथ एकसीध में जमीन से लम्बवत रहेंगे। पैर घुटनों से नहीं मुड़ने चाहिए। दृष्टि ऊपर के हाथ की ओर रहेगी। यही पूर्ण स्थिति है। कुछ समय इसी स्थिति में रहें। फिर सामान्य स्थिति में आयें। इस आसन को पुनः बाँयी ओर से करें।

लाभ-

1. कमर, पीठ, कन्धों, गरदन, कुहनियों व जाँघों के दर्द

समाप्त होते हैं।

2. आलस्य दूर होता है।

3. बगलों की माँसपेशियाँ तथा नस-नाड़ियाँ दृढ़ एवं लचीली बनती हैं

4. टखने पुष्ट होते हैं।

अर्धचन्द्रासन

अर्धचन्द्रासन
अर्धचन्द्रासन

इस आसन में शरीर का आकार अर्धचन्द्र के आकार का हो जाता है। इसलिए इसे अर्धचन्द्रासन कहते हैं

विधि-

सीधे सम स्थिति में खड़े हों अर्थात् एड़ी व पंजे मिले हुए हाथों की मुट्ठियाँ खुली हुईं तथा हाथ शरीर से.. सटे हुए है। दोनों हाथों को धीरे-धीरे बाजू से होते हुए ऊपर उठायें। सिर के ऊपर दोनों हाथों को अंगूठों के सहारे मिलायें। हथेलियाँ खुली हुई तथा सामने की ओर रहेंगी। अब पूरे शरीर को पीछे की ओर झुकायें। कुछ समय इसी स्थिति में रहें। यही पूर्ण स्थिति है। धीरे-धीरे सामान्य स्थिति में आयें।

लाभ-

1. पृष्ठभाग की माँसपेशियाँ लचीली बनती हैं

2. शरीर के भीतरी अवयवों का यथेष्ट व्यायाम होता है

3. मस्तिष्क को शक्ति मिलती है।

4. शरीर की लम्बाई बढ़ती है।

वीरभद्रासन

वीरभद्रासन
वीरभद्रासन

विधि-

उछलकर अथवा बिना उछले दोनों पैर बाजू में खोलें। दोनों हाथ बाजू में, हथेली जमीन की ओर रहेंगी। शरीर को दाँयी ओर घुमाकर दिशा परिवर्तन करें दोनों पैरों के पंजे भी आवश्यकतानुसार दार्यों ओर घुमा लें। दोनों हाथों को सिर के ऊपर ले जाकर मिलायें। कुहनी सीधी रहेंगी। उसके पश्चात् दाँये घुटने को मोड़कर शरीर को नीचे दबायें। बाँया पैर तथा दाँये पैर की जंघा एक सीधी रेखा में रहेंगे। यही पूर्ण स्थिति है। यही क्रिया दूसरी दिशा में अर्थात बाँयी ओर से करें

लाभ-

1. जंघाएँ व पिंडलियाँ मजबूत बनती हैं।

2. कन्धे मजबूत होते हैं।

3. साइटिका का दर्द समाप्त हो जाता है।

4. सीना चौड़ा होता है।

वृक्षासन

वृक्षासन
वृक्षासन

इस आसन में एक पैर पर खड़े रहकर वृक्ष जैसी आकृति बनती है। इसलिए इसे वृक्षासन कहते हैं। विधि-दाँये पैर को उठाकर बाँयी जंघा के मूल में रखें। दोनों हाथों को बाजू में उठाते हुए धीरे-धीरे सिर के ऊपर ले जाकर मिलायें। शरीर को ऊपर की ओर खींचें। श्वाँस रोकें। यही पूर्ण स्थिति है। इस आसन को दूसरे पैर से भी करें।

लाभ-

 1. मानसिक संतुलन ठीक रहता है।

2. लम्बाई बढ़ती है।

3. हाथों की माँस-पेशियाँ लचीली बनती हैं।

4. कन्धों का दर्द दूर होता है।

बैठकर किये जाने वाले आसन

 Siting to be The Posture

बद्ध पद्मासन

बद्ध पद्मासन
बद्ध पद्मासन

पद्मासन को दोनों हाथों से पैरों के अंगूठे पकड़कर बाँधते हैं। इसलिए इसे बद्ध पद्मासन कहते हैं।

विधि-

सर्वप्रथम पद्मासन लगायें है। एड़ियाँ पेट से सटी हुई रहें तथा पंजे जंघाओं के ऊपर से बाहर की ओर निकले रहें। अब बाँये हाथ को पीठ के पीछे से लाकर दाँये पैर का अँगूठा पकड़ें तथा दाँये हाथ से पीठ के पीछे से लाकर बाँये पैर का अंगूठा पकड़ें। कमर, पीठ, रीढ़ की हड्डी एवं गरदन सीधी रहें। यही पूर्ण स्थिति है। सामान्य रूप से श्वाँस, प्रश्वाँस लीजिए। कुछ समय इसी स्थिति में रहकर सामान्य स्थिति में आ जाइए।

लाभ-

1. बद्ध पद्मासन से बल की वृद्धि होती है।

2. सीना चौड़ा होता है।

3. गरदन, कन्धा व पीठ का दर्द समाप्त होता है।

4. साइटिका का दर्द भी समाप्त हो जाता है।

5. रक्त संचार तेज होता है।

6. कुर्सी पर बैठकर काम करने वाले लोगों के लिए यह लाभदायक है

7. महिलाओं के स्तन पुष्ट होते हैं। दूध पर्याप्त मात्रा में उतरता है।

वकासन-

वकासन
वकासन

वक का अर्थ बगुला होता है। इस आसन से शरीर की स्थिति बगुले जैसी हो जाती है। इसलिए इसे

वकासन कहते हैं।

विधि-

अपने दोनों हाथों के पंजों को जमीन पर जमायें। उँगली आगे तथा हथेली पीछे की ओर रहेगी। अब कुहनियों को थोड़ा झुकाकर दोनों घुटनों को उनके ऊपर रखिए। कमर तथा नितम्बों को ऊँचा उठाइये। संतुलन बनाये रखिए। श्वाँस प्रश्वाँस की गति सामान्य रखिए। यही पूर्ण स्थिति है। कुछ समय इसी स्थिति में रुककर सामान्य स्थिति में आ जाइए। धीरे-धीरे पूर्ण स्थिति में अधिक समय तक रुकने का अभ्यास करना चाहिए।

लाभ-

इस आसन से हाथों और भुजाओं की मांसपेशियाँ तथा नस-नाड़ियाँ सुगठित एवं सुदृढ़ बनती हैं। सीना

चौड़ा होता है।

पश्चिमोत्तानासन

पश्चिमोत्तानासन
पश्चिमोत्तानासन

इस आसन को करने से शरीर के पीछे के भाग, गरदन से लेकर कमर तक का खिंचाव होता है। इसलिए इसे पश्चिमोत्तानासन कहते हैं।

विधि-

दोनों पैरों को सामने की ओर फैलायें। एड़ी व पंजे मिले रहेंगे। दोनों हाथ सामने की ओर फैलायें। हथेली नीचे की ओर रहेगी तथा श्वाँस भर कर कुम्भक करें। अब श्वाँस को छोड़ते हुए रेचक करें तथा हाथों से दोनों पैरों के अंगूठे अथवा पैरों के तलवों को पकड़ें। पेट को पिचकाते हुए सामने की ओर झुककर अपने सिर को घुटनों पर टिकायें। घुटनों को ऊपर न उठने दें। इस स्थिति में 30 सेकंड तक रुके। यही पूर्ण स्थिति है।

लाभ-

1. पश्मिोत्तानासन से पूरा पृष्ठ भाग लचीला बनता है।

2. बढ़ा हुआ पेट व मोटापा घटता है।

3. मेरुदण्ड की कठोरता समाप्त होती है।

4. बुढ़ापा जल्दी नहीं आता है।

5. साइटिका तथा कमर का दर्द दूर होता है।

6. यकृत, तिल्ली, आँतों तथा बवासीर के रोग समाप्त होते हैं।

7. जठरागिन प्रदीप्त होती है और भूख बढ़ जाती है।

18. नजला, जुकाम, स्वप्नदोष में भी लाभदायक है।

लेट कर किये जाने वाले आसन

 Lie Down to be The Posture

शलभासन-

इस आसन में शरीर की स्थिति शलभ (टिड्डी) के समान हो जाती है। इसलिए इसे शलभासन कहते हैं।

विधि-

पेट के बल जमीन पर लेट जायें। दोनों हाथों की हथेलियों को ऊपर रखते हुए दोनों जंघाओं के नीचे रखें। ठोड़ी को भूमि पर टिकाते हुए सिर को थोड़ा ऊँचा उठायें। अब दोनों भुजदण्डों व सीने पर दबाव डालते हुए दोनों पैरों को ऊपर उठायें। पैर घुटनों से नहीं मुड़ेंगे। पैरों के अँगूठे से नाभि तक का भाग ऊपर उठायें। श्वाँस को अन्दर रोककर कुम्भक करें। यही पूर्ण स्थिति है। कुछ देर रुककर धीरे-धीरे सामान्य स्थिति में वापस आयें।

लाभ-

1. टाँगे मजबूत व सुडौल बनती हैं।

2. छोटी व बड़ी दोनों आँतों में मजबूती आती है।

3. पेट के रोग दूर होते हैं।

4. यकृत तथा गुर्दे के रोगों में लाभ मिलता है।

5. फेफड़े सशक्त बनते हैं।

6. मेरुदण्ड लचीला बनता है।

7. हर्निया रोग ठीक होता है।

हलासन

इस आसन में शरीर की स्थिति हल के समान हो जाती है। इसलिए इसे हलासन कहते हैं।

विधि-

पीठ के बल जमीन पर लेट जायें हाथ को जमीन पर शरीर के सहारे रखें। हथेलियाँ जमीन की ओर रहेंगी। श्वाँस भरकर हथेलियों से भूमि को दबाते हुए धीरे-धीरे दोनों पैरों को मिली हुई स्थिति रखकर शरीर को ऊपर उठायें। अब

धीरे-धीरे श्वाँस छोड़ते हुए पैरों को सिर की सीध में पीछे जमीन से लगायें। पैर सीधे रहेंगे। घुटनों से मुड़ेंगे नहीं। हाथ जमीन पर ही टिके रहेंगे। यही इस आसन की पूर्ण स्थिति है। धीरे-धीरे पैरों को वापस लाते हुए सामान्य स्थिति में आयें।

लाभ-

1. मधुमेह व हर्निया के रोगों में लाभदायक है।

2. निःसंतान महिलाओं के लिए आशाजनक है।

3. यकृत, प्लीहा तथा पेट के प्राय: सभी रोगों के लिए लाभदायक है।

4. रीढ़ की हड्डी मजबूत तथा लचीली बनती है।

5. पेट, नितम्ब तथा शरीर का मोटापा कम होता है।

सर्वागासन-

इस आसन को करने पर शरीर के सारे अंगों पर प्रभाव पड़ता है। इसलिए इस आसन को सर्वांगासन कहते हैं। इस आसन का एक नाम ‘विपरीत करणी’ भी है।

विधि-

पीठ के बल जमीन पर लेट जायें। हाथों को शरीर के सहारे जमीन पर रखें।

श्वाँस भरते हुए हथेलियों से भूमि पर दबाव देकर दोनों टांगों को धीरे-धीरे बिना मोड़े ऊपर उठायें तथा सीधे जमीन के लम्बवत् खड़ा करें। अब श्वांस बाहर निकालते हुए नितम्ब व कमर को भी ऊपर उठायें तथा कमर के नीचे दोनों हाथों को लगाकर और अधिक ऊँचा व सीधा उठायें। शरीर को इतना ऊँचा व सीधा करें कि ठोड़ी सीने से लग जाये। यह आसन की पूर्ण स्थिति है। कुछ देर इसी स्थिति में रुक कर धीरे-धीरे वापस सामान्य स्थिति में आयें।

लाभ-

1. सर्वांगासन से मस्तिष्क, फेफड़े और हृदय को बल मिलता है।

2. रक्त शुद्ध होता है।

3. रक्त प्रवाह उल्टा हो जाने के कारण शिराएँ मजबूत होती हैं। 4. पाचन शक्ति ठीक होती है तथा भूख बढ़ती है।

5. आँख, नाक, कान व गले के रोगों में लाभदायक है।

शवासन-

इस आसन में शरीर की स्थिति शव (मुर्दा) के समान हो जाती है। शरीर के प्रत्येक अंग को शिथिल कर दिया जाता है। इसलिये इसे शवासन कहते हैं

विधि-

पीठ के बल लेट जायें। दोनों पैरों को एक दूसरे से थोड़ा अलग-अलग रखें। दोनों हाथों को भी शरीर के सहारे शरीर से बिना स्पर्श किए थोड़ा दूर रखें। बाँये पैर को बाँयी ओर तथा दाँये पैर को दाँयी ओर लुढ़का दें। सिर को दाँयी अथवा बाँयी किसी एक ओर लुढ़का दें। हथेलियाँ आकाश की ओर रहें तथा उँगलियाँ सामान्य रूप से बिना तनाव के कुछ मुड़ी हुई रहें। नेत्र बन्द कर शरीर को ढीला छोड़ दें। मन में कोई विचार नहीं रहना चाहिए। मुर्दे के समान शांत पड़े रहें। यही पूर्ण स्थिति है।

लाभ-

1. किसी भी आसन को करने के बाद शवासन करने से शरीर को आराम मिलता है।

2. थकान दूर होती है।

3. मस्तिष्क और हृदय के रोगों में लाभदायक है।

4. तनाव दूर होता है।

5. शरीर चुस्त एवं फुर्तीला बनता है।

Leave a Reply